पूज्य पिता स्वर्गीय रामचन्द्र धनोतिया जी की प्रथम पुण्य तिथि पर पूरा परिवार शोकाकुल था। रह रहकर उनकी यादें और उनके द्वारा जीवन भर किये गये कार्यों के साथ ही दी जाने वाली सीख भी दिमाग में तैर रही थी। जब वो दुनियां में थे, तब उन्हाेंने अपने स्वस्थ्य रहने तक जरा भी आराम नहीं किया। नियमित अनुशासित दिनचर्या के साथ किताबें पढ़ना, साहित्य वितरण और लोगों के सुख- दु:ख में अपनी सामर्थ के अनुसार सहभागी बनना उनके जीवन का अटूट हिस्सा रहा। कोरोना संक्रमण के दूसरे क्रूर दौर ने हमारे पिता श्री रामचन्द्र धनोतिया को हमसे छीन लिया था। 2 मई 2021 को प्रात: उन्होंने अंतिम सांस ली थी। 2 मई 2022 को उनकी प्रथम पुण्य तिथि थी। हमारे पूरे परिवार एवं स्वजनों ने उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर श्रृद्धासुमन अर्पित किये और दिलों की गहराई से उनका स्मरण किया।
पिताजी, जब बीमार हुए तो लगा कुछ दिनों में ठीक हो जाएंगें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिता श्री रामचन्द्र धनोतिया का निधन 2 मई 2021 को 85 वर्ष की उम्र में हो गया। उनकी पहली पुण्यतिथि पास आ रही थी, हमारे मन में था कि उनकी स्मृति में कुछ ऐसा किया जावें जो उन्हें भी पसंद रहा हो। इस बीच मुझे स्मरण आया कि क्यों न उनकी स्मृति में पौधरोपण किया जावें। मन में आया कि भोपाल की स्मार्ट सिटी पार्क में यह कार्य किया जावें। लेकिन वहां वर्तमान में सामान्यजन सीधे यह कार्य नहीं कर सकते। चूंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, तो सोचा उनसे अनुरोध किया जावें। मैंने 25 अप्रैल 2022 को उनके ओएसडी को मोबाइल से संपर्क किया। उधर से कहा गया कि आप पिताजी के बारे में एक पैरा लिखकर भेज दें। मैंने उसका अनुसरण किया।
मैंने पिताजी के बारे में पैरा लिखकर भेजा
मेरे पिता एक शासकीय सेवक रहे। उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद से ही समाज सेवा में अपना समय दान देना शुरू कर दिया था। गायत्री परिवार से जुड़े होने के कारण वे साहित्य वितरण और गायत्री शक्तिपीठ पर नियमित रूप से समय दान के साथ ही अन्य गतिविधियों में अपना पूरा सहयोग देते रहे। वृक्षारोपण में भी उनकी रूची रही। उन्होंने अपने सहयोगी रहे मित्रों के साथ भदभदा विश्राम घाट पर भी पौधरोपण में सहयोग किया। जहां अब स्मार्ट सिटी पार्क है, वहां भी वे नियमित रूप से प्रात: काल टहलने जाते रहे। हमारा परिवार कुछ वर्ष पूर्व तक जवाहर चौक पर ही रहता था। मेरी माता श्रीमती लीलादेवी धनोतिया भी गायत्री परिवार से जुड़ी रही है, और उन्होंने लगभग 60 वर्षों तक युग निर्माण योजना के कार्यों में भागीदारी की। अब वृद्धावस्था के कारण घर में ही रहती है। हमारे परिवार की इच्छा है कि पिता की स्मृति में आपकी उपस्थिति में स्मार्ट सिटी पार्क में वृक्षारोपण के पुनीत कार्य में सहभागी बने। आप अगर इसमें सहमति देंंगे तो अच्छा लगेगा। मेरा (राजेन्द्र धनोतिया वरिष्ठ पत्रकार) आपसे कॉलेज के समय का परिचय है।
यह बात एक सप्ताह पुरानी थी। एक मई को मैंने सीएम के ओएसडी से मैसेज कर जानना चाहा कि क्या सीएम से बात हो पाई। तब मोबाइल पर उन्होंने कहा सीएम की व्यस्तता के कारण अभी नहीं हो पाई है। लेकिन एक मई की रात्रि में उनका मैसेज आया कि सीएम ने अनुमति दे दी है। 2 मई को प्रात: 9 बजे हमें मैसेज मिला कि प्रातः 10.35 बजे स्मार्ट पार्क में उपस्थित होना है। उन्हाेंने वो नाम भी मांगे जो लोग पौधरोपण में सहभागी रहेंगे। मैंने माताजी श्रीमती लीला देवी, छोटे भाई, मेरी पत्नी एवं पुत्री का नाम भेज दिया। वैसे मेरे पुत्र अजय धनोतिया की भी इस कार्य में भागीदारी की इच्छा थी, लेकिन एक मई तक सीएम की ओर से सहमति की जानकारी नहीं थी, तो वह जरूरी कार्य से भोपाल से बाहर चला गया था। खैर 2 मई को हमारा भोपाल में उपस्थित परिवार स्मार्ट सिटी पार्क पहुंच गया। नीयत समय पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चाैहान वहां पहुंच गये। मैंने उनसे माताजी को पौधरोपण में साथ रखने का अनुरोध किया। साथ ही यह भी बताया कि जब आपके पिताश्री का दु:खद निधन हुआ था, तब मैं आपके यहां शोक व्यक्त करने आया था और आपसे बातचीत के दौरान मेरे पिता की बीमारी की चर्चा हुई थी, तब आपने कहा था कि मैं उनसे मिलने आऊंगा। लेकिन आप आ नहीं सके थे। शिवराज जी ने उस बात का मान रखा और पिताजी का पुण्य स्मरण करते हुए मेरी माताजी से भी स्नेहपूर्वक प्रणाम किया और उनसे चर्चा भी की। पिताजी की स्मृति में नीम का पौधा भी रोपा गया।
शिवराजजी आपका आभार
यहां यह कहना उचित होगा कि आपने मेरे पिता की स्मृति में पौधरोपण में मेरे परिवार को सहभागी बनाया इसके लिए मैं अपने परिवार सहित आपका आभारी हूं।
यादें
राजकाज न्यूज, भोपाल : सोमवार, मई 2, 2022,
प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने स्मार्ट सिटी उद्यान में वरिष्ठ पत्रकार एवं राजकाज न्यूज के संपादक राजेंद्र धनोतिया एवं परिजनों के साथ पिता स्व. श्री रामचन्द्र धनोतिया की प्रथम पुण्य-तिथि पर उनकी स्मृति में नीम का पौधा लगाया। इस मौके पर राजेन्द्र धनोतिया की माता श्रीमती लीला देवी धनोतिया, भाई ओमप्रकाश, पत्नी श्रीमती वंदना एवं पुत्री कु. निष्ठा धनोतिया एवं उनके परिवार के सदस्य भी उपस्थित थे। उधर, इंदौर में भी स्वर्गीय श्री रामचन्द्र जी की स्मृति में पुत्रों प्रदीप धनोतिया एवं डॉ. गोपाल धनोतिया, श्रीमती सुभद्रा धनोतिया एवं कॉलेज के प्राचार्य एवं विद्यार्थियों ने पौधरोपण किया।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने स्वर्गीय रामचन्द्र जी का पुण्य स्मरण करते हुए कहा कि - हम सबके थोड़े से प्रयास से हमारी धरती हरी- भरी व समृद्ध होगी। आइये, पर्यावरण के संरक्षण के इस पुनीत प्रयास में आप भी योगदान दीजिये, पौधे रोपियेे। आज लगाए पौधों में नीम स्वाद में भले ही कड़वा हो, लेकिन इससे होने वाले लाभ अमृत के समान होते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से भी नीम बहुत उपयोगी है। करंज, आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण माना गया है। करंज का उपयोग धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है। चौहान ने इस अवसर पर भोपाल के स्मार्ट पार्क में वरिष्ठ पत्रकार एवं न्यूज वेबसाइट राजकाज. कॉम एवं राजकाज. इन के प्रधान संपादक राजेन्द्र धनाेतिया एवं उनके परिवार के साथ नीम का पौधा रोपा। धनोतिया परिवार ने पिता की स्मृति में पौधरोपण में सहभागी बनाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सहृदयता के लिए उनका आभार माना हैं।
ये भी रहे उपस्थित
इस अवसर पर भोपाल कलेक्टर अविनाश लवानिया, एडिशनल पुलिस कमिश्नर सचिन अतुलकर, भोपाल नगर निगम कमिश्नर के.वी.एस. चौधरी सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे। स्वर्गीय रामचन्द्र धनोतिया को विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों, समाजसेवियों, गायत्री परिवार के स्वजनों सहित परिजनों ने सोशल मीडिया एवं दूरभाष तथा मोबाइल के माध्यम से शोक श्रृद्धाजंली अर्पित की हैं।
इंदौर में भी किया गया पौधरोपण
स्वर्गीय रामचन्द्र जी की प्रथम पुण्य तिथि के अवसर पर भोपाल सहित इंदौर में परिजनों ने पौधरोपण के पुनीत कार्य के साथ ही जरूरतमंदों के लिए भोजन का इंतजाम भी किया। इंदौर में फिजिथेरेपी कॉलेज एवं शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय में वृक्षारोपण धनोतिया परिवार द्वारा किया गया। इस मौके पर डेंटल कालेज के रजिस्ट्रार डॉ. अमित रावत, फिजिथेरेपी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. रामहरि मीणा एवं डिप्टी डॉयरेक्टर हेंमत शुक्ला एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
बाबूजी की प्रथम पुण्यतिथि पर पुष्पाजंली
भोपाल, 22-04-2022 लगभग एक वर्ष पूर्व बाबूजी के दु:खद निधन ने हमारे पूरे परिवार एवं स्वजनों को झंकझोर कर रख दिया था। वह समय इतना कठिन था कि हम एक- दूसरे को संभाल कर खुद संभल रहे थे। बहुत बुरा समय था, जब हम अपने किसी स्वजन को खोने के बाद उसके दु:ख को कम करने और सांत्वना देने के लिए उसके पास भी नही जा पा रहे थे। कोविड- 19 का दूसरा दौर सभी पर भारी था। ऐसा ही वक्त हमारे परिवार पर भी आया। पहले दो करीबी मित्रों को खोया और फिर हमारे घर- परिवार के मुखिया पिता श्री रामचन्द्र धनोतिया भी हमें छोड़कर चले गये। आज तिथि अनुसार उनके स्वर्गवास को एक वर्ष पूर्ण हो गया है। वैसे 2 मई 2021 को हमारे (प्रदीप, राजेेन्द्र, ओमप्रकाश एवं डॉ. गोपाल) पिता का साया हमारे ऊपर से उठा था।
पिताजी वैसे तो 2015 में लकवाग्रस्त हो गये थे, लेकिन परिजनों की सेवा से उन्हें 2021 के काेरोना संक्रमण के दूसरे दौर से पहले तक काफी स्वास्थ्य लाभ हो गया था। जैसे ही कोरोना संक्रमण ने उन्हें घेरा अप्रेल माह के तीसरे सप्ताह में उनका स्वास्थ्य अचानक खराब होने लगा और फिर वे संभल नहीं सके। 2 मई 2021 की प्रात: वो हम सबको छोड़कर चले गये। पिता जी की पहली पुण्यतिथि में अभी एक सप्ताह से ज्यादा का समय हैं, लेकिन परिवार के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा तिथि अनुसार यानि आज उनकी पुण्यतिथि पर ब्राह्मण भोज कराने का निर्णय लिया, और इसको विधि- विधान से संपन्न कराकर पिता श्री की पुण्यात्मा को शांति का उपक्रम किया गया।
हमारे परिवार के मुखिया के र्स्वगारोहण के बाद उनके पुत्रों के साथ ही बहुओं एवं पोतों ने भी वर्ष भर उनकी याद में जरूरतमंदों की सेवा का अघोषित संकल्प लिया और उसे निभाते चले आ रहे है। समय- समय पर वृद्धाआश्रम में जाकर उनकी सेवा और सहायता का उपक्रम भी परिवार कर रहा है, ऐसा तय किया है कि इस उपक्रम को यथासंभव जारी रखा जाएं। पोते अजय और सुधांशु भी अपनी सामर्थ अनुसार इस उपक्रम में लगे हुए हैं। यहां मैं ( राजेन्द्र धनोतिया ) इस बात का उल्लेख करना उचित समझता हूं कि जब परिवार में पुण्यतिथि पर ब्राह्मण भोज करना तय किया तो मैंने अपने परिचित पंडित जी को मोबाइल लगाकर आमंत्रित किया तो उन्होंने भी यह सुझाव दिया कि आप पूर्ववत जरूरतमंदों एवं वृद्धाआश्रम में ही यह कार्य करें, लेकिन परिवार की महिलाओं के अनुरोध की बात बताने पर उन्होंने भी पंच ब्राह्मणोंं के साथ हमारे यहां आना स्वीकार कर लिया।
तिथि अनुसार प्रथम पुण्य तिथि पर पिता जी के साथ की कई स्मृतियां दिल- दिमाग में रह- रह कर आ रही है। दिन- भर से इसका क्रम कुछ ज्यादा है। वह एक- एक पल ऑखों के सामने से गुजर रहा है, जब उनकी पीड़ा बढ़ती जा रही थी और इलाज का एकमात्र सहारा हमारे बड़े भाई समान डॉ. योगेश मल्होत्रा को हम मोबाइल पर समय- समय पर बताकर उनके मार्गदर्शन में बाबुजी और परिवार के अन्य सदस्यों का इलाज जारी रखे हुए थे। बाबूजी को चेतन्य बनाये रखने के लिए कहते थे- बाबूजी राम- राम, जय- जय श्री राम, भैय्या राम, पहले कुछ दिनों तक तो वो भी हमारे साथ इनका दोहराव करते थे, लेकिन धीरे- धीरे इसका क्रम घटता गया। फिर आखिर के दो दिन तो वो सिर्फ ऑखों से इस पर प्रतिक्रिया देने लगे और 1 मई को यह भी बंद हो गया। उन्हें सुनाई दे रहा है, ऐसा तो अहसास होता था, लेकिन उनकी तरफ से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नजर नहीं आ रही थी। एक और दो मई की देर रात्रि तक उन्हें ब- मुश्किल तरल पदार्थ देते रहे। हमारी निगाहें उनके आक्सो मीटर और ऑक्सीजन कंस्नट्रेटर पर लगी रही। सुबह पांच बजे हमारी बोझिल ऑखों पर नींद हावी हो गयी और जब नींद खुली तो पिता जी यानि हमारे बाबुजी हमें छोड़कर जा चुके थे।
मेरे पिता एक शासकीय सेवक थे। उन्होंने सेवानिवृत्ति के पहले से ही गायत्री परिवार के युग निर्माण योजना में सेवा का संकल्प लिया और इसमें जीवनकाल के अंतिम समय से पूर्व जब तक वे स्वस्थ्य रहे निभाते रहे। उनकी दिनचर्या बहुत ही अनुशासित रही। जब तक वो सक्रिय रहे, हमें घर के कामों का अहसास नहीं हुआ। सुबह पांच बजे उठना और फिर नित्यकर्म से निपटकर घर के कामों में लग जाना। मैं, जब सुबह उठता था, तक तक तो बाबुजी घर के रोजाना के कार्य निपटा चुके होते थे। साथ ही अखण्ड ज्योति और युग निर्माण योजना से जुड़े साहित्य का वितरण एवं उससे जुड़ कार्य कर चुके होते थे। शाम होते ही गायत्री शक्तिपीठ पर समय दान के लिए पहुंच जाते थे। 3 से 4 घंटे का समय वहां भी नियमित रूप से देते थे। उनका जीवन मूल्य पूरी तरह सादा जीवन उच्च विचार का पालन करते हुए गुजरा। आज उनकी कई बातें याद आ रही हैं। अब उन्हें सिर्फ इसी तरह याद करने के सिवाय कुछ और नहीं।
यहां यह कहना चाहता हूं कि क्रूर काल समय के भयावह समय को हमने देखा और कई अपनों को इस दौरान खो दिया। खैर अब वह बुरा समय गुजर सा गया लगता है। फिलहाल कोरोना संक्रमण का असर लगभग शून्य सा है। यह बात हमारे मध्यप्रदेश की है। वैसे देश की राजधानी में यह फिर अपना असर दिखाने लगा है। लेकिन इस बार अच्छा यह है कि जिन लोगों को वैक्सीन के दो डोज लग चुके है, उन पर इसका असर काफी कम है। नीयती ने हमें अब अपनों को खोने के बाद अब प्रतिवर्ष उन्हें याद करने और उनकी स्मृतियों को अपने में जिंदा रखने के सिवाय कुछ छोड़ा नहीं है, इसलिये इसी के सहारे आगे के जीवन में बढ़ते रहना है....
कोविड- 19 ने हमसे छीना पिता का साया, भयावह स्थिति से गुजर रहा हमारा प्रदेश
02 मई 2021 भोपाल, कोविड- 19 ने पिछले दिनों हमसे हमारे पिता ( रामचन्द्र धनोतिया आत्मज् स्व. मन्नालाल जी धनोतिया उम्र 85 वर्ष ) को छीन लिया। 24 अप्रैल को अचानक ही इस महामारी का प्रवेश हमारे पिता के शरीर को माध्यम बना का हमारे हंसते - खेलते घर में प्रवेश कर गया। पिता का सीटी स्केन कराया तो उसमें किसी प्रकार का इंफेक्शन नही पाया गया। आरटी- पीसीआर रिपोर्ट भी निगेटिव्ह आई। लेकिन उनके ब्लड सेम्पल में काफी इंफेक्शन पाया गया। हमारे पारिवारिक चिकित्सक ने उसी दिन से हमें अप्रत्यक्ष रूप से चेता दिया था कि आप लोग अपना और परिवार का खयाल रखिये बाऊजी यानि हमारे पिता रामचन्द्र धनोतिया की सेवा भी करते रहें।
चिकित्सक का इशारा हम भी समझ गये थे। घर के सदस्य खासकर मैं ( राजेन्द्र धनोतिया ) और मेरा छोटा भाई ओमप्रकाश उनके समीप रहते है, इसलिये उनके भी कोरोना के संक्रमण से प्रभावित होने की पूरी संभावना है। हुआ भी ऐसा ही घर में एक के बाद एक लगभग सभी कम - ज्यादा इस महामारी की चपेट में आते गये। मेरा बेटा अजय और पत्नी वंदना भी इस संक्रमण की जद में आ गये। मां और बेटी को भी आंशिक असर रहा। लेकिन उन्हें इस महामारी के ज्यादा असर से बचाकर रखने में हम सफल रहे। सभी ने कोरोना से बचाव के लिए चिकित्सक की सलाह पर दवाएं लेना शुरू कर दी। यह सब तो चल ही रहा था और दूसरी ओर पिता की तबियत लगातार खराब होती जा रही थी। बात उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की हुई, लेकिन हालात इतने खराब थे कि अस्पताल में भर्ती कराने के नाम पर ही थर्रथर्राहट आ जाती थी। रोज ही अस्पतालों की स्थिति को लेकर सुनते आ रहे थे। आखिरकार हमने पिता के ऑक्सीजन की व्यवस्था घर में ही की और चिकित्सक के परामर्श पर इलाज जारी रखा। 27 अप्रैल को लगा कि पिता ठीक हो रहे है, लेेकिन यह हमारा भ्रम साबित हुआ। उनकी शारीरिक गतिविधियां लगातार घटती जा रही थी, उन्हें आहार और दवाएं देना भी मुश्किल होता जा रहा था।
30 अप्रैल को हालात और बिगड़े। इस बीच जब मैंने अपना सीटी स्केन कराया तो 1 मई को मेरी रिपोर्ट में भी संक्रमण दिखाई दिया। चिकित्सकों ने कहा कि आपको भी अस्पताल जाकर अपना इलाज कराना होगा। शाम होते- होते मैंने भी अस्पतालों में एडमिट होने के प्रयास शुरू कर दिये, लेकिन दिक्कत यह थी कि कोविड- 19 प्रोटोकाल के हिसाब से मेरी आरटी- पीसीआर रिपोर्ट पॉजिटिव्ह होना चाहिए थी, तभी एडमिशन मिल सकता था। देर शाम तक भोपाल कमिश्नर के सहयोग से गांधी मेडिकल कॉलेज पहुंचा। वहां भी तात्कालिक जांच में रिपोर्ट निगेटिव्ह आई। रात्रि में गांधी मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. लोकेन्द्र दवे के पास पहुंचा। उन्होंने कुछ जांच के बाद कहा कि आपको चिकित्सालय में जाने की जरूरत नहीं है, दवाओं से ही कंट्रोल हो जाएगा। क्योंकि मेरा टेम्प्रेचर और ऑक्सीजन सेच्युरेशन नार्मल आ रहा था। सांस लेने में भी कोई दिक्कत नहीं थी। कुछ राहत मिली। रात्रि में घर आए और फिर से पिता की तिमारदारी मेें जुट गये। हमारे पारीवारिक चिकित्सक डॉ. योगेश मल्होत्रा ने भी पहले ही हमारे संक्रमण को भांप कर दवाएं शुरू कर दी थी, संभवत: इसीलिए संक्रमण आगे बढ़ने से थम गया था। 2 मई को जब हम पिता के पार्थिव शरीर को लेकर विश्राम घाट की ओर जा रहे थे, तभी आरटी- पीसीआर की रिपोर्ट पॉजिटिव्ह आ गयी।
इधर, 1 मई की देर रात्रि पिता की हालत ज्यादा खराब हो गयी। ऑक्सीजन लेवल यानि सेच्युरेशन लगातार गिरने लगा। 2 मई की सुबह साढ़े चार बजे मैंने उनकी सांसों को चलते देखा। आक्सीजन सेच्युरेशन कम ही आ रहा था। भगवान से प्रार्थना करते हुए सो गया। सुबह छोटे भाई और बेटे अजय ने देखा पिता अचेत अवस्था में है। मुझे उठाया। मैंने तत्काल चिकित्सक डॉ. मल्होत्रा को मोबाइल लगाकर स्थिति बताई। इस बीच उनकी छाती पर लगातार पंप करता रहा। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। हमारे सिर से पिता का साया जा चुंका था। इस महामारी के कारण हालात ऐसे बने कि मेरे बड़े भाई प्रदीप धनोतिया और सबसे छोटा भाई डॉ. गोपाल धनोतिया इंदौर से भोपाल नहीं आ सके, क्योंकि हमारे घर के लगभग सभी सदस्य कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके थे। उन्हें चिकित्सकों ने घर में प्रवेश एवं अंतिम संस्कार में भाग लेने की अनुमति नहीं दी। वैसे भी कोरोना संक्रमण के कारण पिता का पार्थिव शरीर ज्यादा देर तक घर में रखना ठीक नहीं था।
कुछ मित्रों को जानकारी दी। भोपाल कमिश्नर से अनुरोध किया तो उन्होंने शव वाहन की व्यवस्था करवायी। शव वाहन आ गया। लेकिन पिता के शरीर को हाथ लगाने से कर्मी ने भी मना कर दिया। मेरे बेटे ने हिम्मत की, कुछ मदद मैंने भी कि और पिता के पार्थिव शरीर को शव वाहन तक लेकर गया। मेरा बेटा एवं छोटा भाई ओमप्रकाश अपनी वाहन से विश्राम घाट पहुंचे। मना करने के बाद भी मेरे दो मित्र भदभदा विश्राम घाट पर पहुंचे। वहां के हालात देखकर तय किया कि इलेक्ट्रीक शवगृह में अंतिम संस्कार किया जावें। वहां की औपचारिकताएं पूरी की। मेरे बचपन का मित्र विश्राम घाट की व्यवस्थाएं संभाल रहा है, तो उसने भी सभी औपचारिकताएं पूरी करवाई। अंतिम संस्कार के लिए पहले से ही 2 पार्थिव देह इंतजार में थी। लगभग ढाई घंटे के इंतजार के बाद किसी तरह पिता का अंतिम संस्कार किया। और अस्थियों का संचय कर उसे वहीं लॉकर में सुरक्षित रख कर घर लौटे।
यह स्थिति तो मेरे घर की थी, लेकिन इन दिनों और इसके पूर्व मेरे दो पारीवारिक मित्रों और उनकी माताओं ने भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मदद के लिए मैंने काफी प्रयास किये। प्रदेश नेताओं एवं अधिकारियों को मोबाइल पर उनकी मदद के लिए लगातार अनुरोध करता रहा। किसी तरह से कुछ व्यवस्थाएं भी जुटाई। शुरूआत के दिनों में तो सभी ने मदद की, लेकिन एक स्थिति यह भी बनी कि उन्होंने मेरा मोबाइल उठाना और मैसेज का जवाब देना बंद कर दिया। जब मुझे स्वयं को जरूरत पड़ी तो भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। उनकी अपनी समस्याएं है, प्रदेश के हालात बहुत खराब है। मैं, भी समझता हूं। सबकी अपनी दिक्कतें और परेशानियां है। यहां एक जिक्र जरूर करना चाहूंगा। हमारी राजधानी के पूर्व सांसद और मेरे अनुज तुल्य आलोक संजर की सेवाभाव का। उनका कोई दूसरा सानी नहीं हो सकता। मैंने उन्हें जब भी मदद का अनुरोध किया उन्होंने हर संभव मदद की। यहां तक कि जब मेरे एक वरिष्ठ और पारिवारिक मित्र को प्लाज्मा की जरूरत हुई तो उन्हाेंने अपने परिवार में संकट का समय होने के बाद भी दो बार अपने परिवार के सदस्यों से प्लाज्मा डोनेट करवाकर प्लाज्मा की व्यवस्था करवाई। उनके बारे में लिखना तो बहुत चाहता हूं, लेकिन इस बीच इतना ज्यादा घट चुका है कि अब ज्यादा संभव नहीं है। कई पारीवारिक मित्रों के यहां इस महामारी ने नुकसान पंहुचाया। लगभग दिनभर ही अपने आस - पास के लोगों स्वजनों की मौत की खबर आ रही है। भोपाल एवं इंदौर में तो हालात काफी खराब है। सरकार कह रही है स्थिति नियंत्रण में आती जा रही है। भगवान उनकी इस बयानबाजी पर मोहर लगाये ताकि मौतों का यह तांडव किसी तरह से थमे और आगे किसी स्वजन के संक्रमण का शिकार होने की अशुभ सूचना से बचा जा सके।
इन्हें भी खोया
कोरोना की आफत का आना और परम मित्रों का दुनियां से चले जाना, बहुत याद आती हैं राजेश भाई और तात्या भाई की
भोपाल 1-05-2022, वर्ष 2021 का अप्रेल माह मेरी जिंदगी का सबसे बुरा साल रहा। कोरोना संक्रमण के दूसरे दौर ने वह सब कुछ छींना जो वर्षों तक मेरे जीवन में नहीं छींना जाना था। काफी बुरा समय इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि इस वर्ष के अप्रेल माह में मैंने बहुत कुछ खोया। जीवन के अच्छे- बुरे समय में आपके परिजन और वो जन जो आपके जीवन में बहुत ज्यादा महत्व रखते है, उनका आपके बीच से दूर दुनियां में चला जाना जहां से वे कभी नहीं लौटने वाले हो तो फिर जीवन में कितना भी चाहे नीरसता का भाव स्थायी रूप ले लेता है। मैंने पिछला पूरा वर्ष इसी जद्दोजहद के बीच व्यतीत किया हैं। उन खैरख्वाहों को खोया जो इस बुरे दौर में जब कोई किसी से मिलने में भी डर रहा था, लगभग रोज ही हाल-चाल जानते रहते थे। मिलने भी आ जाया करते थे। भले ही उनसे दो मीटर की दूरी पर खड़े होकर मिलता था या फिर अपने घर की बालकनी में खड़ा होकर हाल- चाल लिया और दिया करता था।
भूमिका बहुत हुई, मैं बात कर रहा हूं, मेरे परम मित्र राजेश तिवारी और मेरे बड़े भाई जैसे निर्मल पिंगले (तात्या भाई) की। ये दोनों ही मेरे जीवन में बहुत मायने रखते हैं। जब थे तब भी और अब जब नहीं है, तब भी। वर्ष 2021 अप्रेल के शुरूआती दिनों में एक दिन मोबाइल पर मुझे बताया गया कि तात्या भाई की तबियत ठीक नहीं है। उन्हें स्वांस लेने में काफी परेशानी हो रही है। उनकी माता जी यानि हम सबकी बाई की तबियत भी ठीक नहीं है। भाभी श्रीमती श्वेता को भी ठीक नहीं लग रहा। तीनों को ही कोरोना के लक्षण प्रतीत हो रहे है। इधर, मेरे पिता की भी तबियत ठीक नहीं थी, तो मैं वहां नही जा पाया। उनके परिजन उन्हें लेकर एक निजी अस्पताल गये। वहां काफी परेशानी के बाद उन्हेंं एडमिट किया गया। लेकिन कोरोना के मरीजों की संख्या इतनी अधिक थी कि किसी का भी ध्यान ठीक से नहीं रखा जा रहा था। या यह कहें कि वह संभव नहीं था। स्वास्थ्य कर्मी और चिकित्सक भी कम पड़ रहे थे, मरीजों को अंटेड करने में इतना समय लग रहा था कि उसके परिजनों को अपने मरीज की चिंता सताने लगी थी। बार-बार भाभी और उनके बच्चों के मोबाइल आ रहे थे, मैं भी यथा संभव प्रयास कर रहा था किसी तरह जनरल वार्ड से इमरजेंसी वार्ड का इंतजाम हुआ, लेकिन वहां भी चिकित्सक ठीक से अंटेड नहीं कर रहे थे। तीनाें यानि बाई, तात्या भाई और भाभी को उनके बच्चों ने इलाज की व्यवस्था ठीक नहीं होने पर अन्य चिकित्सालय में भर्ती करा दिया। रोज ही उनका हाल लिया जाता रहा। आश्वासन मिलते रहे।
फिर एक दिन यह कहा गया कि बाई तो ठीक हो रही है। मगर तात्या भाई की हालत में खास सुधार नहीं है। भाभी कुछ ठीक है, उन्हें अस्पताल से रिलीव कर दिया जाएगा। मगर उन्होंने पति यानि तात्या भाई की हालत को देखते हुए वहीं रहने का फैसला किया। अप्रेल के दूसरे सप्ताह के आखिर दिनों में वहां से यह खबर आई की बाई को रिलीव कर देंगे, उनकी तबियत अब सुधार पर है, लेकिन एक दिन बाद ही देर रात्रि में उन्होंने दम तोड़ दिया। उसी अस्पताल में होने के बाद भी तात्या भाई से मांं के निधन की जानकारी को छुपाया गया। उनकी पोती यानि तात्या भाई के बड़ी बेटी प्रिया ने अस्पताल से सीधे भदभदा विश्राम घाट पर लाकर उनके पार्थिव शरीर को रात्रि में ही अग्नि दी। तात्या भाई के दो भाई और भी भोपाल में ही थे, लेकिन उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था। मां के निधन की जानकारी भले ही तात्या भाई को नहीे दी गयी थी, लेकिन उन्हें इस बात का अहसास हो गया था। उनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा था। किसी तरह से परिजन और उनके स्वजनों ने नहीं मिल रहे इंजेक्शनों का इंतजाम हर कीमत पर किया। प्लाज्मा की व्यवस्था भी कराई गयी। इसमें हमारी राजधानी के पूर्व सासंद और मेरे अनुज आलोक संजर ने पूरी मदद की। प्लाज्मा का इंतजाम उन्होंने अपने ही परिवार के सदस्यों के माध्यम से करवाया। उनकी इस सदाशयता को मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊंगा। खैर यह सब भी काम नहीं आया और आख्रिर 17 अप्रेल को तात्या भाई हम सबको छोड़कर चले गये। मेरा स्वास्थ्य खराब था, फिर भी मैं तात्या भाई के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ। जेपी भाई भी नहीं माने और वे भी वहां पहुंचे। पिता को अंतिम विदाई देने तात्या भाई की बेटी प्रियंका और अन्य परिजन भी आए थे।
राजेश भाई आपको कभी भी भूल नहीं पाऊंंगा
मेरे जीवन में मित्रों की कमी नहीं, इनकी संख्या बहुत से भी अधिक है। कॉलेज से लेकर छात्र राजनीति एवं पत्रकारिता के कैरियर और समाज के अधिकांश अंगों में मेरा दायरा काफी फैला हुआ हैं। लेकिन इन सबसे हटकर राजेश भाई आपने मुझे काफी प्रभावित किया। कॉलेज के वक्त जब हमारा संपर्क हुआ और फिर वह गहरा ही होता गया। यह रिश्ता इतना प्रगाड़ हुआ कि एक- दो दिन भी नहीं मिल पाते थे, तो कितनी भी व्यस्तता रही हो, बात कर ही लिया करते थे। कभी घर पर तो कभी आपके आफिस के नीचे तो कभी जवाहर चौक पर तात्या भाई के प्रतिष्ठान पर। आपने मेरे अच्छे खासकर बुरे समय पर हमेशा ही साथ खड़े होकर साथ दिया। जब मैं, जवाहर चौक का शासकीय आवास छोड़कर गुलमोहर कॉलोनी में रहने आया तब भी आपने यहां पर भी मेरे निवास पर हमेशा ही दस्तक दी। जब तात्या भाई की तबियत खराब हुई तब भी मैंने आपसे अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए कहा, लेकिन आपका अपनी छोड़ दूसरों की चिंता करने का स्वभाव इसमें आड़े आता रहा। आपको भी कोरोना ने जकड़ लिया था। अप्रेल माह में आप भी इस बीमारी से ग्रसित हो गये। घर पर ही अपना इलाज करते रहे। फिर एक दिन जब बोनी (पीयूष) बैंगलुरू से भोपाल आया और आपका टेस्ट कराया गया तब पता चला कि आपको अस्पताल में भर्ती कराना होगा। तब भी मेरी आपसे मोबाइल पर बात हुई थी, और आपने अपने स्वभाव के अनुसार बाऊजी (मेरे पिता) और मेरा हालचाल जानने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई थी।
शाम को मैंने बोनी से पूछा तब उसने बताया कि आपको एडमिट कराना होगा। आपको अस्पताल में एडमिट कराने के बाद रोजाना ही हालचाल लेता रहा। शुरूआति दिनों में तो यह जानकारी मिलती रही कि आपके स्वास्थय में सुधार है, लेकिन फिर एक दिन पता चला कि इंजेक्शन की जरूरत है और वह नहीं मिल रहा है, आपके बेटे बोनी और भांजे सहित अन्य परिजनों ने काफी प्रयास किये। मैंने भी अपना जोर लगाया। काफी भागदौड़ के बाद इंजेक्शन नहीं मिल रहा था, तब मैंने अपने एक अधिकारी मित्र से अनुरोध किया। उन्होंने इंदौर से इंजेक्शन की व्यवस्था की, लेकिन तब तक बोनी ने मुझे बताया कि उन्हें इंजेक्शन मिल गया है। इंजेक्शन के बाद चिकित्सक यह जानकारी देते रहे कि अब शीघ्र लाभ मिल जाएगा। स्वास्थ्य भी ठीक हाेने लगेगा। आपकी ईश्वर में गहरी आस्था और आपके द्वारा जीवन में किये गये अच्छे कामों को देखकर मुझे लगता रहा कि आपको कुछ नहीं हो सकता। आपका इलाज जारी था और इस बीच आपकी अम्मा भी बीमार हो गयी। आपके बच्चों एवं भांजों ने उनकी सेवा घर पर ही किसी तरह इंतजाम कर खूब की। लेकिन तात्या भाई की तरह ही माताजी आपको छोड़कर चली गयी। इसकी जानकारी आपको भी नहीं दी गयी। वैसे ही हमने आप तक तात्या भाई की मृत्यु की जानकारी भी छुपाई थी। ताकि आपके स्वास्थ्य पर उसका बुरा असर ना पड़े। अम्मा का अंतिम संस्कार आपके परिजनों ने किया। मैं, वहांं जाना चाहता था, लेकिन इस बीच मेरे पिता (बाऊजी) का स्वास्थ्य भी काफी खराब हो गया था, बोनी ने कहा अंकल आप अपना और दादाजी का ख्याल रखिये। उधर रंजना भाभी एवं बोनी और रूद्राक्षी को भी कोरोना संक्रमित होने की जानकारी मिली, लेकिन उन्होंने फिर भी आपके स्वास्थ्य के लिए दिन- रात्रि कुछ नहीं देखा।
अप्रेल के आखिर में यह जानकारी भी मिलने लगी कि आपका स्वास्थ्य अब सुुधार पर है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बोनी ने एक दिन आपका फोटो भी भेजा था। उसमें लग रहा था कि आप बहुत कमजोर हो गये है, लेकिन ईश्वर में अगाध आस्था रखने वाला मेरा मित्र शीघ्र स्वस्थ्य होकर मोबाइल पर स्वयं ही इसकी जानकारी देगा कि हां भाई कैसे हो राजेश बोल रहा हूं। लेकिन यह मेरे मन का भ्रम ही साबित हुआ। एक मई को जानकारी मिली कि आप हमें छोड़कर चले गये। यह मेरे लिये काफी दु:खदाई था। इस बीच मेरे स्वास्थ्य में भी अत्यधिक गिरावट आ गयी थी। बाऊजी भी गंभीर हो गये थे। मैं, अस्पताल में भर्ती होने की जद्दाेजहद कर रहा था और उधर पिताजी अति गंभीर अवस्था में आ गये थे। मैंने आपको अंतिम विदाई के लिए आना चाहा, लेकिन बोनी ने मेरे और पिता के स्वास्थ्य का हवाला देेकर न आने का अनुरोध किया। हिम्मत जवाब दे गयी थी, आपको अंतिम विदाई न दे पाने का अफसोस हमेशा रहेगा।
कुछ यादें
राजेन्द्र धनोतिया
जी-2, 186 गुलमोहर कॉलोनी, भोपाल
मोबाइल- 9425015651