Publish Date:17-Feb-2018 14:49:00
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में खड़े उम्मीदवारों एवं उनके परिजनों को आय एवं संपत्ति के स्रोत बताने का आदेश देते हुए शुक्रवार को कहा कि जनप्रतिनिधि या उनके सहयोगी अधिकतर ऐसा तरीका अपनाते हैं जिससे वे संपत्ति भी बना लेते हैं और वे भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत आने वाले अपराध केदायरे में आने से बच जाते हैं। इस काम में सोना उनके लिए भगवान है। न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि जनप्रतिनिधियों या उनके सहयोगियों की संपत्तियों में बेतहाशा वृद्धि हमेशा गैरकानूनी गतिविधियों में श्रेणी में नहीं आता। भले ही उनकी गतिविधियां या क्रियाकलाप उचित नहीं हों, लेकिन वे भ्रष्टाचार कानून या किसी अन्य कानून के तहत अपराध में श्रेणी में नहीं आते। लेकिन यह जनप्रतिनिधि के संवैधानिक दायित्व के विपरीत है।
जनप्रतिनिधि लोगों की शिकायतें दूर करने के लिए होते हैं लेकिन ऐसी गतिविधियों में लिप्त होकर जनप्रतिनिधि खुद ‘शिकायत’ बन जाते हैं। साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जब जनप्रतिनिधि या उनके सहयोगी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों से लोन लेते हैं। चाहे प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से।
मतलब, ये जनप्रतिनिधि या उनके सहयोगी खुद लोन लेते हैं या ऐसी संस्था व कंपनियों के नाम पर लेते हैं जिन पर उनका नियंत्रण होता है। सरफेसी कानून के तहत इस तरह केलोन एनपीए होते हैं। यह भी आजकल बहुत दिखने को मिल रहा है कि जनप्रतिनिधियों या सहयोगियों के खाते एनपीए में तब्दील होने के बावजूद उन्हें उसी वित्तीय संस्थान या अन्य संस्थानों से फिर से लोन मिल जाता है।
साभार- अमर उजाला