26-Apr-2024

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सरकार आपसे पेट्रोल पर 55.5 और डीजल पर 47.3 प्रतिशत वसूलती है टैक्स

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पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ रही कीमतों के कारण हाहाकार मचा हुआ है. दोनों के दाम लगभग 5 साल के सर्वोच्‍च स्‍तर पर पहुंच गए हैं. इससे महंगाई का खौफ बढ़ता जा रहा है और इसके साथ बढ़ रही हैं आम आदमी की मुश्किलें. देश के 58 हजार से ज़्यादा पेट्रोल पम्पों पर रोज़ लाखों लोग पेट्रोल और डीजल लेते हैं, लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि आखिर इनके दाम बढ़ने के क्‍या हैं कारण. आपको यह जानकार हैरानी होगी कि पेट्रोल पर आप लगभग 55.5% और डीजल पर लगभग 47.3% टैक्स चुकाते हैं. आज हम आपको पेट्रोल और डीजल की कीमतें तय होने का पूरा गणित बता रहे हैं-

 इस क्रम में पहले हम पेट्रोल और डीजल से जुड़े सरकार के कुछ अहम निर्णय के बारे में बता रहे हैं. जून 2017 से पहले तक तेल की कीमतें हर 15 दिनों पर तय होती थीं. यह निर्णय हर महीने की पहली और 16 वीं तारीख को होता था. इससे पहले 18 अक्टूबर 2014 को तेल की कीमतें तय करने का काम सरकार ने महीने में एक बार करने का फैसला किया था. उससे पहले हर तीसरे महीने तेल की कीमतें निर्धारित की जाती थीं.

फिर सरकार ने उदयपुर, जमशेदपुर, विशाखापट्टनम, पुडुचेरी और चंडीगढ़ के पांच शहरों में एक मई 2017 से 40 दिनों का पायलट शुरू किया. इसी आधार पर सरकार ने देश के बाकी हिस्सों में भी प्रतिदिन पेट्रोल और डीज़ल के मूल्य में बदलावों की व्यवस्था शुरू की. अब पिछले साल 16 जून 2017 से देशभर में सभी पेट्रोल पंपों पर तेल की कीमतें रोज तय होती हैं.

विदेशी मुद्रा दरों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों के आधार पर रोज पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है. इनके अलावा, राज्‍य और केंद्र सरकार के अपने-अपने टैक्‍स हैं. भारत में कच्चे तेल की लगभग 75% जरूरतों को आयात के जरिए पूरा किया जाता है. इस प्रकार, कच्चे तेल और विदेशी मुद्रा दरों की अंतरराष्ट्रीय कीमतें भारत में पेट्रोल की कीमत का आधार बनती हैं. हालांकि यह खुदरा कीमत का केवल एक हिस्सा है. अंतिम मूल्य अन्य कारकों के द्वारा निर्धारित किया जाता है. पेट्रोलियम कंपनियां मार्केट की कंडीशन, एक्सचेंज रेट और मांग और आपूर्ति की स्थितियों को भी ध्‍यान में रखकर कीमतें तय करती हैं.

खुदरे में बिक रहे पेट्रोल और डीजल के लिए जितनी रकम का आप भुगतान करते हैं, उसमें आप क्रमश: लगभग 55.5 फीसदी और लगभग 47.3 फीसदी टैक्स चुकाते हैं. ये सारे टैक्स केंद्र और राज्‍यों की जेब में जाते हैं. इसमें सबसे मुख्य उत्पाद शुल्क होता है. अप्रैल, 2014 में पेट्रोल पर लगने वाला उत्पाद शुल्क 9.8 प्रति लीटर था, जिसमें 2015-2016 में कई बार बढ़ोत्तरी होने के बाद अब यह लगभग 21.48 हो गया है. वहीं अप्रैल, 2014 में डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 3.65 प्रति लीटर लगती थी, जो अब लगभग 17.33 प्रति लीटर हो गई है.

कच्चे तेल को तेल विपणन कंपनियां खरीदती हैं और फिर रिफाइन करके उसे डीलरों को सौंपती हैं. इस काम में सार्वजनिक और निजी कंपनियों दोनों शामिल होती हैं. हालांकि, तीन पीएसयू- भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) और हिंदुस्तान प्राइवेट कॉर्पोरेट लिमिटेड (एचपीसीएल) का इस क्षेत्र के लगभग 95% काम पर नियंत्रण है.  डीलर पेट्रोल पंप चलाने वाले लोग हैं. वे खुद को खुदरा कीमतों पर उपभोक्ताओं के अंत में करों और अपने स्वयं के मार्जिन जोड़ने के बाद पेट्रोल बेचते हैं.

कच्चे तेल ओएमसी द्वारा खरीदा जाता है, जो कच्चे तेल की कीमतें प्रति बैरल के अलावा माल और परिवहन शुल्क का भुगतान करते हैं. इस तेल को पेट्रोलियम में परिवर्तित करने के लिए रिफाइनरियों में भेज दिया जाता है. यहां ओएमसी अपनी सेवाओं के लिए रिफाइनरियों को रिफाइनरी ट्रांसफर शुल्क का भुगतान करते हैं. ओएमसी इस रिफाइन्ड पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी का भुगतान करती है. यह परिष्कृत तेल, जो पेट्रोल के रूप में है, फिर ओएमसी द्वारा डीलरों को लागत से अधिक लाभ पर बेच दिया जाता है. पेट्रोल अब डीलरों के स्वामित्व में होता है. प्रदूषण सेस और अधिभार के साथ राज्य वैट और डीलर के मार्जिन को अंततः पेट्रोल की कीमत में जोड़ दिया जाता है जो पेट्रोल के अंतिम खुदरा मूल्य को निर्धारित करता है.

साभार- आईबीएन खबर

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