आजादी से पहले और बाद में भारत में एक से बढ़कर एक अमीर लोग हुए हैं. इनमें एक व्यक्ति 1937 में दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के तौर पर टाइम मैगजीन के कवर पेज पर नजर आए थे. हम बात कर रहे हैं हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान (Mir Osman Ali Khan) की. उनके बारे में कई किस्से कहे-सुने जाते हैं. कहा जाता है कि उनके घर में मोती और बहुमूल्य रत्न बिखरे पड़े रहते थे. वहीं, दस्तावेज बताते हैं कि आजादी के बाद भारत और चीन के युद्ध के दौरान उन्होंने कई हजार टन सोना भारत सरकार को सौंप दिया था. रिकॉर्ड्स के मुताबिक, 40 के दशक की शुरुआत में मीर उस्मान अली खान की कुल संपत्ति 18.68 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा थी.
न्यूज - 18 की खबर के मुताबिक मीर उस्मान अली खान की संपत्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह 1,000 रुपये कीमत वाले जैकब हीरे का पेपरवेट बनाकर इस्तेमाल करते थे. जैकब हीरा 280 कैरेट का था. इसे दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा पॉलिश्ड हीरा माना जाता है. इसका नाम इसके मूल मालिक अलेक्जेंडर मैल्कन जैकब के नाम पर रखा गया था. उन्होंने इसे 1891 में बेल्जियम सिंडिकेट से खरीदा था. मीर उस्मान अली खान के पिता और हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खान जैकब डायमंड को दुर्भाग्यशाली मानते थे. लिहाजा, वह इस हीरे को अपनी जूती की नोक में लगाकर रखते थे. बाद में मीर उस्मान अली खान ने इसे पिता की चप्पल से निकालकर पेपरवेट के तौर पर इस्तेमाल किया.
हैदराबाद से दुनियाभर में भेजे जाते थे हीरे
हैदराबाद के निजामों के लिए कमाई का सबसे बड़ा साधन गोलकोंडा की हीरे की खदानें थीं. बताया जाता है कि हैदराबाद के पास मौजूद खदानों को 16वीं से लेकर 19वीं शताब्दी तक दुनिया के सबसे बड़े बेहतरीन हीरों के केंद्र के तौर पर माना जाता था. हैदराबाद 18वीं शताब्दी में दुनियाभर के बाजारों में हीरों का अकेला आपूर्तिकर्ता था. बाद में दुनिया को ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की हीरे की खदानों की जानकारी हुई. पिता के बाद जब मीर उस्मान अली खान हैदराबाद के निजाम बने तो हीरे की खदानें भी विरासत में उनको मिल गईं. उनके पास दुनिया के सबसे नायाब हीरों में शुमार दरिया-ए-नूर, कोहिनूर, नूर-अल-आइन, होप डायमंड, प्रिंसी डज्ञयमंड, रीजेंट डायमंड और वीटल्सबैक डायमंड भी थे.
अभी कहां है निजाम का बहुमूल्य जैकब हीरा?
भारत सरकार ने 1995 में निजाम के ट्रस्ट से जैकब हीरा 13 करोड़ रुपये से ज्यादा कीमत अदा कर खरीदा था. फिलहाल ये हीरा मुंबई में भारतीय रिजर्व बैंक के पास सुरक्षित रखा है. इसके अलावा भारत सरकार को बेचे 173 गहनों में 2,000 कैरेट के पन्ने और 40,000 मोती भी थे. आजादी के बाद 1948 में हैदराबाद के विलय के बाद निजाम मीर उस्माल अली खान को तख्त छोड़ना पड़ा. इसके बाद उन्होंने राज्य के गवर्नर के तौर पर काम किया. हैदराबाद के निजाम के काफिले में 50 रोल्स-रॉयस शामिल थीं. इनमें सिल्वर घोस्ट थ्रोन कार भी थी. इसे उन्होंने 1912 में खरीदा था.
हर साल हजारों पाउंड के नोट चूहे कुतर देते थे
आजादी के समय यानी कि 77 साल पहले निजाम की कुल दौलत करीब 17.5 लाख करोड़ रुपए आंकी गई थी. इतिहासकार डॉमिनिक लापियर और लेरी कॉलिंस की किताब ‘फ्रीडम एड मिडनाइट’ के मुताबिक, हैदराबाद के निजाम के पास आजादी के वक्त 20 लाख ब्रिटिश पाउंड से ज्यादा की नगद राशि रही होगी. निजाम के महल में नोटों के बंडल अखबार में लपेटकर रखे रहते थे. हर साल कई हजार पाउंड मूल्य के नोट चूहे ही कुतर जाते थे.
टीन के बर्तनों में खाते थे अमीर निजाम
निजाम के सातवें हैदराबाद मीर उस्मान अली खान अपनी कंजूसी के लिए काफी बदनाम रहे थे. फ्रीडम एट मिडनाइट के मुताबिक, निजाम के पास सोने के बहुत बर्तन थे. इनकी संख्या इतनी ज्यादा दी थी कि एकसाथ 200 लोगों को सोने के बर्तनों में खाना खिलाया जा सकता था. फिर भी उनकी कंजूसी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि निजाम खुद टीन के बर्तनों में खाना खाते थे. यही नहीं, वह ज्यादातर एक ही मैला-कुचैला सूती पायजामा पहनते थे. इसके अलावा पैरों में बहुत घटिया जूती पहने रहते थे. कंजूसी के हालात कुछ ऐसे थे कि उनसे मिलने वाले लोग ऐशट्रे में जो बुझी सिगरेट छोड़ देते थे, निजाम उसे ही सुलगा कर पी लेते थे.
निधन पर आधा झुकाया गया राष्ट्रीय ध्वज
मीर उस्मान अली खान ने अपनी दौलत का इस्तेमाल सार्वजनिक संस्थान बनाने में किया. उस्मानिया जनरल अस्पताल और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद उन्हीं की देन हैं. वहीं, उन्होंने बेगमपेट हवाई अड्डा, हैदराबाद उच्च न्यायालय, उस्मान सागर और हिमायत सागर का निर्माण कार्य भी शुरू किया था. निजाम की मृत्यु किंग कोठी पैलेस में 24 फरवरी 1967 को हुई. राज्य सरकार ने 25 फरवरी 1967 को शोक दिवस घोषित किया था. सरकारी कार्यालय बंद रखे गए. पूरे राज्य में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुकाकर रखा गया.
साभार- न्यूज 18