Publish Date:11-Nov-2017 19:45:04
आज माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय, भोपाल ने एक अभिनव आयोजन किया। विजयदत्त श्रीधर की पहल से हुई इस कला पत्रकारिता कार्य शाला में जहां नए पत्रकार आमंत्रित थे वहीं मेरी तरह 25-30 साल से शौकिया कलम चला रहे लोग भी बुलवाए गए थे। मैंने भी वर्ष 1984 की फिल्म उत्सव की समीक्षा लिखे जाने के अनुभव से लेकर अब तक कला, साहित्य, सिनेमा और संस्कृति से जुड़े लेखन पर अपने विचार रखे। वर्ष 1989 विश्व कविता उत्सव की रिर्पोटिंग के अनुभव भी शेयर किए।
मेरी राय में मध्यप्रदेश और भोपाल में कला पत्रकारिता आज कटघरे में है। अखबारों में इन खबरों के लिए स्पेस जरूर बढ़ा है लेकिन अशोक वक्त, सुनील मिश्र, पंकज पाठक, रहीम मिर्जा, विनय उपाध्याय जैसे समीक्षक अब अखबारों में नहीं लिखते जिसे पाठक बहुत चाव से पढ़ते थे। यहां तक कि प्रदेश के बाहर से प्रकाशित एक अखबार (द हिन्दू नई दिल्ली) मध्यप्रदेश के लोगों को यह बात बहुत विस्तार से बताता है कि उनके प्रदेश के अभिनेता राजीव वर्मा हिन्दी सिनेमा के कितने लोकप्रिय पापा रहे। लेकिन हम आशावादी हैं, मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक विशेषताओं पर आधारित मौलिक और विशिष्ट लेखन का दौर पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। लोक कलाएं, लोक साहित्य, लोक नाट्य से जुड़ी मध्यप्रदेश की अनेक प्रतिभाएं जनता के सामने मीडिया के माध्यम से नहीं पहुंच सकी हैं। फिर एक अच्छा दौर जरूर आएगा।
अशोक मनवानी