20-Apr-2024

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केन्द्रीय श्रम संगठनों का संयुक्त मोर्चा 22 मई को पूरे देश में करेगा अनशन व विरोध प्रदर्शन

श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर विरोध जताया
केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों द्वारा कर्मचारियों के भत्तों में कटौती करने का विरोध
भोपाल, 17 मई 2020,(रविवार) मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में श्रम कानूनों में श्रमिकों के हितों के खिलाफ किए गए बदलावों के विरोध में केन्द्रीय श्रम संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने 22 मई को देशव्यापी अनशन व विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है । उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय श्रमिक संगठनों के संयुक्त मोर्चे में इंटक, सीटू, एचएमएस, एटक, सीएआईटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीटीयू सहित विभिन्न सेक्टर के फेडरेशन व एशोसिएशन शामिल हैं । संयुक्त मोर्चे की कॉरडिनेशन कमेटी के चेयरमेन व इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जी. संजीवा रेड्डी ने आव्हान किया है कि 22 मई 2020 को संयुक्त मोर्चे की सभी यूनियनें व फेडरेशन राज्य, जिला, तहसील व संस्थानों पर एक दिवसीय उपवास व प्रदर्शन कर केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में किए गए बदलाव का विरोध कर उन्हें वापस लेने की मांग करेंगे । यह जानकारी इंटक के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बी.डी. गौतम ने दी । 
श्री गौतम ने बताया कि डॉ. जी. संजीवा रेड्डी की अध्यक्षता में सम्पन्न संयुक्त मोर्चे की बैठक में संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश की सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में परिवर्तन कर श्रमिक विरोधी मानसिकता का परिचय दिया गया है । अन्य राज्य भी इसी रास्ते पर श्रम कानूनों को कमजोर कर श्रमिकों के अधिकार छीनने की तैयारी में हैं । भारत सरकार द्वारा दीर्घकालिक लॉकडाउन के कारण लाखों मजदूरों की रोजी रोटी छिन गई है, प्रवासी मजदूर अपनी जान पर खेलकर हजारों किलोमीटर सडकों और रेल्वे ट्रेक पर पैदल चलने को मजबूर हैं और दुर्घटनाओं में अनेक मजदूरों की मृत्यु हो गई है । ऐसे समय में केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों द्वारा श्रमिकों व ट्रेड यूनियनों के अधिकारों पर हमला किया गया है इससे श्रमिकों के परिवारों में घोर निराशा है ।
संयुक्त वक्तव्य में यह भी कहा गया है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा एक कदम आगे बढते हुए कारखाना अधिनियम 1948, इंडस्ट्रीयल डिस्पुट एक्ट 1947, एमपीआईआर एक्ट 1960, कॉट्रेक्ट लेबर एक्ट 1970 आदि में श्रमिक विरोधी बदलाव केबीनेट व विधानसभा में पारित किए बगैर ही अध्यादेश लाकर एक कार्यकारी आदेश जारी करके श्रमिकों को श्रम कानूनों से वंचित कर दिया गया है । इससे नियोक्ता किसी भी श्रमिक को कभी भी निकाल सकेगा और पीडित श्रमिक श्रम न्यायालय में न्याय मांगने नहीं जा सकेगा। यहॉ तक कि नियोक्ता द्वारा मध्यप्रदेश श्रम कल्याण मण्डल को प्रति श्रमिक प्रतिमाह देय मात्र 80 रुपये के अभिदान के भुगतान से भी कानून में छूट प्रदान कर दी गई है। कार्य के घण्टे (शिफ्ट/पाली) 8 घण्टे से बढाकर 12 घण्टे करके आईएलओ के मानकों का उल्लघंन कर श्रमिकों को बंधुआ बनाने का कानून बनाकर अमानवीय कृत्य किया गया है। 
केन्द्रीय श्रम संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने केन्द्र व राज्य सरकारों के इन निर्णयों को श्रमिकों के प्रति अमानवीय अपराध व निर्दयता बताते हुए इन्टरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) द्वारा निर्धारित मानकों जैसेः- संगठन का अधिकार, सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य कार्य के 8 घण्टे का अधिकार इत्यादि के विपरीत बताते हुए आईएलओ में इसकी शिकायत की थी, जिसे संज्ञान में लेकर आईएलओ ने भारत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि आईएलओ के सदस्य देश होने के नाते भारत की केन्द्र व राज्य सरकारों को कार्यस्थल पर श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए और श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को स्थगित कर श्रम संगठनों से विचार-विमर्श करने के उपरांत ही श्रमिक हितैषी बदलाव करना चाहिए । संयुक्त वक्तव्य में केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों द्वारा कर्मचारियों के भत्तों में की गई कटौती का भी विरोध किया गया है। 
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