25-Apr-2024

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येचुरी बोले, चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की संभावना पर विपक्ष में हुई चर्चा

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नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों द्वारा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर सवाल उठाने पर भले ही अब तक राजनीतिक दलों ने खुलकर कोई स्टैंड नहीं लिया हो लेकिन गतिरोध को देखते हुए विपक्ष में चर्चा शुरू हो गई है। मंगलवार को सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि चीफ जस्टिस पर उठे सवालों के मद्देनजर हम विपक्षी दल आपस में चर्चा कर रहे हैं और संभावना तलाश रहे हैं कि क्या आगामी बजट सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है?

येचुरी ने कहा, 'लगता है सुप्रीम कोर्ट का संकट अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। ऐसे में उसमें दखल देने की जरूरत है और वक्त आ गया है कि विधायिका अपनी भूमिका निभाए। हम विपक्षी दल आपस में चर्चाकर संभावना तलाश रहे हैं कि बजट सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग लाया जाए।' कहा जा रहा है कि महाभियोग प्रस्ताव की बातकर विपक्ष सरकार और न्यायपालिका पर कहीं न कहीं एक दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। उल्लेखनीय है कि राज्यसभा में विपक्ष के पास नंबर है, अगर ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो राज्यसभा में आ सकता है। राज्यसभा में इस प्रस्ताव को लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी।

विपक्ष में हुई चर्चा
भले ही येचुरी ने महाभियोग प्रस्ताव की बात कही हो, लेकिन इस पर सभी विपक्षी दलों में आम सहमति बननी जरूरी है। इसे लेकर विपक्ष के बीच शुरुआती बातचीत हुई है। बताया जाता है कि यह विचार येचुरी ने ही तमाम दलों के सामने रखा। कांग्रेस, टीएमसी व लेफ्ट के अन्य धड़ों से जुड़े सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के विकल्प पर चर्चा हुई है। बताया जाता है कि जहां सीपीएम इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के पक्ष में है, वहीं कांग्रेस फिलहाल इसे आगे बढ़ाने के मूड में नहीं है। उधर, TMC जैसे दल इस पर स्पष्ट रुख देने की बजाए स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। गौरतलब है कि लोकसभा में चूंकि विपक्ष के पास नंबर नहीं है, इसलिए यह प्रस्ताव राज्यसभा में ही लाया जा सकता है। राज्यसभा में कांग्रेस के बिना यह प्रस्ताव लाना संभव नहीं है।

दबाव की रणनीति
बताया जाता है कि महाभियोग प्रस्ताव के पीछे विपक्ष की रणनीति दबाव बनाने की है। दरसअल, विपक्ष की मंशा चीफ जस्टिस पर दबाव की है। विपक्ष मानता है कि आने वाले समय में कई अहम मामले उनके सामने आनेवाले हैं। चीफ जस्टिस का कार्यकाल आगामी 2 अक्टूबर तक है। इस दौरान कई महत्वपूर्ण मामले उनके समक्ष आ सकते हैं, जिनमें जस्टिस लोया के मामले से लेकर अयोध्या मामले की सुनवाई, लव लिहाद, आधार से जुड़े मामले समेत कई संवैधानिक महत्व के मुद्दे शामिल हैं।

गौरतबल है कि अयोध्या मामले में आगामी 6 फरवरी से सुनवाई शुरू होनी है और चीफ जस्टिस ने संकेत दिया है कि किसी भी हाल में इस सुनवाई को टाला नहीं जाएगा। विपक्ष को लगता है कि चीफ जस्टिस पर सरकार की ओर से दबाव रहता होगा। विपक्ष की सोच सुप्रीम कोर्ट के उन चार जजों द्वारा उठाए गए सवालों के मद्देनजर है, जिसमें उन्होंने लोकतंत्र को खतरे में बताते हुए अदालती मामलों के आवंटन को लेकर चीफ जस्टिस की कार्यशैली पर उंगली उठाई थी।

कांग्रेस की हिचक
जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर कांग्रेस की हिचक के पीछे इस मामले को लेकर पार्टी के भीतर आम राय का न होना बताया जाता है। सूत्रों के मुताबिक, इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर कानूनी विशेषज्ञ नेताओं सहित तमाम नेताओं की दो राय है। एक धड़ा जहां मिश्रा के खिलाफ प्रस्ताव का समर्थन करने की बात कर रहा है, वहीं दूसरे धड़े की राय है कि फिलहाल हमें न्यायपालिका में दखल देने की जरूरत नहीं है। इस धड़े की दलील है कि एक व्यक्ति के बहाने पूरी न्यायपालिका को निशाना नहीं बनाया जा सकता। कहा जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस धड़े की राय से सहमत हैं। रोचक यह है कि कांग्रेस ने भले ही इस मामले के सामने आने के बाद इस मुद्दे को उठाया हो, लेकिन कांग्रेस जजों की बात को ही आगे रखते हुए रुक गई और उसने बेहद नपी-तुली प्रतिक्रिया दी।

कैसे आता है महाभियोग प्रस्ताव
किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी एक सदन में लाया जा सकता है। लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव आने के लिए सदन के कम से कम 100 सदस्यों के प्रस्ताव के पक्ष में समर्थन दस्तखत के रूप में होना चाहिए। वहीं, राज्यसभा में इस प्रस्ताव के लिए सदन के 50 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है। किसी भी सदन में यह प्रस्ताव आता है तो उस प्रस्ताव पर सदन का सभापति या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार या खारिज कर सकता है।

साभार- नवभारत टाइम्‍स

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