सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को पदोन्नति में आरक्षण मामले में सुनवायी प्रारंभ हुई और सुनवायी शुरू होते ही शासन की ओर से प्रकरण को बढ़ाये जाने का निवेदन कर बहस हेतु और समय मांगा गया। प्रतिवादी के अधिवक्ताओं के विरोध के फलस्वरूप किसी प्रकार की रियायत न्यायालय द्वारा नहीं दी गई। शासन की ओर से अधिवक्ता व्ही. शेखर द्वारा अपना पक्ष रखना प्रारंभ किया गया।
13 फरवरी को शासन के अधिवक्ताओं की ओर से प्रकरण की तारीख बढ़ाये जाने का निवेदन न्यायालय से किया गया था, जिसे न्यायालय द्वारा ठुकरा दिया गया था। प्रकरण में अब तक शासन पक्ष के 10 वकील बदले जा चुके है। प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगभग 1 घण्टे सुनवाई के पश्चात प्रकरण की निरंतर सुनवायी हेतु आगामी तारीख 21.02.2017 निश्चित की गयी है।
मंगलवार को शासन की ओर से बहस के लिये वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल भी उपस्थित हुये। यह उल्लेखनीय है कि प्रकरण में लगभग 10 बार सुनवायी हेतु तारीख नियत हो चुकी है एवं हर बार शासन की ओर से सार्थक बहस की शुरूआत न करते हुये हमेशा और समय की मांग की जाती रही है, जिससे ऐसा स्पष्ट होता है कि शासन के पास न्यायालय के समक्ष रखने को न तो कोई तर्क है और न ही कोई विश्वसनीय आंकड़े।
दिनांक 09.02.2017 को भी सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्णय में कर्नाटक राज्य के पदोन्नति नियमों को संविधान सम्मत न पाते हुये परिणामी वरिष्ठता दिये जाने को गलत ठहराया था एवं सभी पदोन्नतियों की पुनर्समीक्षा करने के आदेश पारित किये थे। मध्यप्रदेश शासन के पदोन्नति नियम भी संविधान सम्मत न पाये जाने के कारण उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा अपात्र घोषित किये गये था।
यहां उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक राज्यों के पदोन्नति नियम असंवैधानिक होने की पुष्टि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अब तक की जा चुकी है। चूंकि मध्यप्रदेश पदोन्नति नियम भी इन्हीं आधारों पर उच्च न्यायालय द्वारा अपास्त किये गये थे। अतः इन नियमों के असंवैधानिक होने की माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पुष्टि होना लगभग निश्चित है।
लक्ष्मीनारायण शर्मा महामंत्री,सामान्य, पिछड़ा वर्ग,
अल्पसंख्यक अधिकारी कर्मचारी (सपक्स) संयुक्त मोर्चा