20-Apr-2024

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टी धर्माराव को गुजरे हो गये 3 वर्ष, श्रृद्धाजंली

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तीन वर्ष पूर्व आईएएस अधिकारी टी धर्माराव का एक दुर्घटना में असामायिक निधन हो गया था। 1989 बैच के आईएएस टी. धर्माराव सहित चार की दुर्घटना में मौत हुई थी, कई अन्‍य घायल भी हो गये थे। धर्मारावजी से 13 अगस्‍त 2012 को लिये गये विशेष साक्षात्‍कार पेश हैं...

मध्‍यप्रदेश कैडर के 1989 बैच के आईएएस अधिकारी टी. धर्माराव उनकी पत्‍नी विद्याराव सहित दो अन्‍य अधिकारियों की पत्नियों की मौत लेह में हुए एक दुख:द घटना में मृत्‍यु हो गयी। प्रदेश के एक आईपीएस अधिकारी अशोक अवस्‍थी एवं उज्‍जैन विकास प्राधिकरण अधिकारी शिवेन्‍द्र सिंह गंभीर रूप से घायल हैं। राव दम्‍पत्ति की मृत्‍यु पर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्‍य सचिव आर. परशुराम, आईएएस एसोसिएशन तथा राजकाज न्‍यूज परिवार की ओर से शोक संवेदना व्‍यक्‍त की गयी है। राजकॉज न्‍यूज टी. धर्माराव से 13 अगस्‍त 2012 को लिए गये विशेष साक्षात्‍कार को भी हू-ब-हू पेश कर रहा है।

बचपन की वह वृद्ध महिला आज भी याद आती हैं...

एक गरीब किसान के यहां जन्म लिया। पढ़ाई के लिए भी साधनों की कमी थी, लेकिन इसके बाद भी आगे बढ़ने की ललक ने आईएएस अफसर बनने की चाह को रूकने नहीं दिया। स्कूली शिक्षा के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। आंध्र प्रदेश में कलेक्टर को रोल माडल माना जाता है। यही आस मन में लिए आईएएस बनने के पूर्व तीन वर्ष तक शिपिंग कार्पोरेशन आफ मुम्बई में नौकरी की और आईएएस की तैयारी करते रहे। आखिरकार 1989 में आईएएस में सिलेक्शन हो गया और अब तक की 23 वर्ष की सेवा में 21 वर्ष फिल्ड पोस्टिंग में रहे। हम यहां बात कर रहे है आईएएस अधिकारी टी. धर्माराव की। राजकाज न्‍यूज के संपादक राजेन्द्र धनोतिया ने उनसे 13 अगस्‍त 2012 को की गयी चर्चा। पेश हैं चर्चा के मुख्य अंश-

सवाल- आपने बचपन में पढ़ाई के लिए काफी संघर्ष किया, इस मुकाम तक कैसे पहुंचे?

जवाब- मेरा जन्म आंध्र प्रदेश के एक गरीब किसान के यहां हुआ। लेकिन पढ़ाई में शुरू से ही रूची थी। प्राथमिक कक्षाओं में अव्वल आता रहा। कक्षा सात में जिला बोर्ड में टॉप किया। उसी वर्ष आंध्रा सरकार ने विशेष गुरूकुल विद्यालय का प्रयोग शुरू किया था। मैँने उसकी प्रवेश परीक्षा में शामिल हुआ। उसमें चयन हो गया। इस विद्यालय में पहले बैच में प्रवेश मिला। यहां पढ़ाई का सारा खर्च सरकार उठाती थी। पढ़ाई चल ही रही थी कि इस बीच इस प्रयोग की सफलता को देखते हुए वहां की सरकार ने जूनियर गुरूकुल महाविद्यालय शुरू किया। उसमें भी मेरा चयन हुआ। 10 वीं बोर्ड में मैंने टॉप किया। 12 वीं की परीक्षा में भी मेरी प्रदेश में तीसरी रेंक आई। इसके बाद आंध्र यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की। इसमें भी टॉप किया। वहां से एमबीए करने के लिए कलकत्ता चला गया। मेरी पूरी पढ़ाई स्कालरशीप से हुई।

सवाल- जब आप प्राथमिक कक्षा में पढ़ते थे, तब सुना है आपको गुरूकुल विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में जाने के लिए पड़ौसी से पैसे उधार लेने पड़े थे?

जवाब- हां, मैंने एक गरीब परिवार में जन्म लिया था। मां-पिता भी पढ़े लिखे नहीं थे। जब मैं 7 वीं में मेरिट में आया था। गुरूकुल में प्रवेश के लिए परीक्षा देने जाना था। पिता ने पैसा नहीं होने पर वहां जाने की अनुमति नहीं दी। तब मैं रोने लगा। अगले दिन पेपर था। जिला मुख्यालय तक जाना था। तब पिताजी ने पड़ौस में रहने वाली एक वृद्ध महिला से 10 रुपये उधार लेकर मुझे दिये और बस में बैठा दिया। जिला मुख्यालय तक मैं अकेला गया। वहां जाकर परीक्षा दी और पास हुआ। इसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैं आज केरियर में जहां हूं, उसी वृद्ध महिला श्रीमती नागम्मा की वजह से हूं। अगर वह वृद्ध महिला उस समय दस रुपये ना देती तो हो सकता है कि मुझे जीवन में आगे बढ़ने का यह अवसर मिलता भी या नहीं। जब मुझे मुम्बई में नौकरी लगी थी, और में अपने घर गया तो उस वृद्ध महिला के लिए साड़ी लेकर गया था।

सवाल- आपको फिल्में देखने का शौक हैं?

जवाब- हां, मुझे फिल्में देखना बहुत पंसद हैं। जब युवा थे, तब एनटी रामाराव का जमाना था। मेरे फेवरेट हीरो भी वहीं थे। फर्स्ट-डे, फर्स्ट शो देखते थे। कई बार एक ही फिल्म 10-10 बार भी देखते थे। फिल्मों का इतना शौक था कि कई बार तो एक ही दिन में तीन-तीन शो देख लेते थे। उस समय धार्मिक फिल्में अधिक बनती थी। यह शौक अभी भी है, लेकिन अब समय कम मिलता है। घर पर टी.वी. पर कभी-कभी तेलगू फिल्म देखता हूं। वैस अब हिन्दी फिल्म देखता हूं, हाल ही में भोपाल में परिवार के साथ फिल्म- बोलबच्चन देखी थी। संगीत सुनने का शौक भी है। लता मंगेशकर एवं मो. रफी मेरे पंसदीदा गायक हैं। खेल में क्रिकेट, बेडमिंटन और बालीवाल पंसद है। लेकिन अब समय नहीं मिलता। फिटनेस के लिए सुबह-शाम सैर पर जाता हूं।

सवाल- पढ़ने में क्या पंसद हैं?

जवाब- न्यूज पेपर पढ़ने के साथ दिन की शुरूआत होती है। किताबों में फिक्शन, इग्लिश नॉवेल पंसद है। आरएसव्हीपी नरोन्हा की पुस्तक बाय एन इडियट से काफी प्रभावित रहा। यह किताब जनरल एडमिनिस्ट्रेशन पर आधारित थी। चेतन भगव की कन्टेम्पटरी बुक 5 पाइंट समवन, वन नाइट@ कॉल सेंटर पढ़ रहा हूं। आमतौर पर पुस्तकें पढ़ने का समय टूर पर ही मिलता हैं।

सवाल- आप जब पहली बार कलेक्टर बने, तब आपने क्या नया किया?

जवाब- मैं वर्ष 1997 में कलेक्टर शहडोल बना। तब मैंने आदिवासी, गरीब और जरूरतमंदों की बहुत मदद की। क्योंकि मैंने स्वयं ने गरीबी देखी है, इसलिए उनकी पीढ़ी और जरूरत का अहसास रहा। गरीबों की ज्यादा सुनता था। उनके काम करता था। मैं, जब शहडोल गया था, तब वहां के लोग कलेक्टर के रूप में अजय सिंह यादव (हाल ही में उनका स्वर्गवास हुआ हैं।) को याद करते थे। अब वहां के लोग मुझे याद करते है। मैंने शहडोल में सबसे ज्यादा ध्यान जल संवर्धन पर दिया। शासकीय योजनाएं तब बहुत नहीं होती थी। हमने वहां पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार और वृक्षारोपण पर ध्यान दिया। तब जिले को प्रियदर्शनी अवार्ड मिला था। मैं, जहां भी कलेक्टर रहा। गरीबों की योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया। योजनाओं के क्रियान्वयन पर नजर रखता था। इसके लिए आकस्मिक निरीक्षण करता रहा। ग्वालियर कलेक्टर था, तब परख एक्सप्रेस योजना शुरू की थी।

सवाल- आपको अपनी सेवाकाल में कौन-सा लम्हा अभी भी याद आता हैं?

जवाब- मैं, बस्तर में प्रोबेशनर एसडीएम नारायणपुर के रूप में पदस्थ था। तब नक्सल समस्या से अचानक सामना हो गया था। एक जनवरी 1992 का दिन था। अबूझमाड़ के कोहकामेटा ग्राम में तत्कालीन कलेक्टर जेपी व्यास सहित हम दस अधिकारी एक ट्रायबल आश्रम का निरीक्षण कर रहे थे। वहां अचानक पाण्डुदलम (नक्सली) के एक दर्जन से अधिक सदस्य सामने आ गये। एक घंटे से अधिक समय तक तनावपूर्ण स्थिति रही। चूंकि मुझे तेलगू आती थी, तो मैंने उनसे उनकी भाषा में बात की। चर्चा चलती रही। किसी तरह मैं, उन्हें समझाने में सफल रहा। नक्सली हथियार लिए हुए थे। मुझे पता था कि वामपंथी मानसिकता वाले इन लोगों से कैसे और क्या बात करनी है। जब नक्सली वहां से चले गये वहां उपस्थित सभी अधिकारियों ने राहत की सांस ली। अधिकारियों का डर था कि कही ये लोग अपहरण जैसा कोई कदम ना उठाएं।

राव टी. धर्मा की प्रोफाइल

जन्म- 12 अगस्त 1958, आईएएस में प्रवेश 1989। पहली पोस्टिंग असि. कलेक्टर जगदलपुर जून 1990, एसडीओ के रूप में पहली पोस्टिंग नारायणपुर, प्रोजेक्ट आॅफिसर डीआरडीए जबलपुर के रूप में भी कार्य। जुलाई 1996 में सीईओ जिला पंचायता सतना भी रहे। कलेक्टर शहडोल, सतना एवं ग्वालियर रहे। उन्होंने एमडी सिविल सप्लाई कार्पो. के साथ ही आबकारी आयुक्त के रूप में काम किया और सचिव आदिम जाति कल्याण एवं सचिव जीएडी एवं गृह विभाग के रूप में काम करने के बाद आयुक्त उज्जैन तथा शहडोल के रूप में पदस्थ रहे। वर्तमान में आयुक्त कोष एवं लेखा तथा पदेन सचिव वित्त विभाग।

(यह साक्षात्‍कार मैंने पीपुल्‍स समाचार में विशेष संवाददाता की हैसियत में श्री राव से किया था।)

और भी यादें हैं मेरी टी. धर्माराव के साथ

हंसमुख और मिलनसार टी.धर्मा राव से मेरी मुलाकात वर्षों पुरानी है। जब भी वे भोपाल में पदस्‍थ रहे या‍ फिर भोपाल के बाहर भी पदस्‍थ रहे तो मेरा उनसे संपर्क हमेशा ही रहा। विगत वर्षों में उनसे मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता ही गया और उनसे संबंध ज्‍यादा ही आत्‍मीय होते गये। जब टी. धर्माराव सचिव गृह विभाग थे, तो उनसे एक दिन चर्चा के दौरान उज्‍जैन शहर की चर्चा चल रही थी। मैंने उनसे पूछा की आपकी कभी उज्‍जैन में पदस्‍थापना की इच्‍छा नहीं हुई। धार्मिक नगरी है। उन्‍होंने बताया कि एक बार मन में आया था, जब में वहां सड़क घोटाले की जांच के दौरान गया था, तब।

इसी चर्चा के दौरान मैंने उनसे कहा कि वहां तो महाकाल की इच्‍छा के बगैर कुछ नहीं होता। उनकी इच्‍छा होगी तो आपको वहां का कमिश्‍नर बनने का मौका मिल सकता है। उस वक्‍त उन्‍हें मेरी बात पर भरौसा नहीं हुआ। लेकिन इस बातचीत के डेढ़ माह बाद ही उनकी पोस्टिंग कमिश्‍नर उज्‍जैन के रूप में हो गयी। पोस्टिंग के बाद श्री राव का फाने आया- कहा, राजेन्‍द्र आपने सही कहा था।

धर्माराव की एक बात मुझे बहुत भाति थी, वो हमेशा बिना लाग-लपेट के बातें करते थे। मुझे याद है, जब मैं उनसे साक्षात्‍कार करने गया था तो मैंने उनसे कहा आप इतने गरीब परिवार से थे, क्‍या मैं यह बात आपके साक्षात्‍कार के अंशों में आपके कहे गये शब्‍दों के साथ प्रकाशित कर दूं। तो उन्‍होंने कुछ सोचने के बाद इसकी मंजूरी दे दी थी।

एक ओर किस्‍सा मुझे याद आता है, श्री राव की आयुक्त कोष एवं लेखा तथा पदेन सचिव वित्त विभाग के रूप में पदस्‍थापना हुई। उन्‍हें मंत्रालय में सचिव की हैसियत में एक छोटा-सा कमरा मिला। मैं उनसे मिलने गया तो मैंने कहा कि आप बड़ा कमरा क्‍यों नहीं ले लेते। इस पर उन्‍होंने बे-बाक होकर कहा- राजेन्‍द्र मैं जब सामान्‍य प्रशासन विभाग का सचिव था, तब मैंने ही सर्कुलर जारी किया था कि पदेन सचिव या उप सचिवों को मंत्रालय में अलग से कमरा आवंटित नहीं किया जाए। अब मैं कैसे बड़ा कमरा मांगूगां और फिर यहां कितनी देर बैठना होता है।

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