Publish Date:17-Aug-2018 13:43:55
आरएसएस के वरिष्ठ नेता मदन दास देवी का कहना है कि हालात ही कुछ ऐसे थे कि नरेन्द्र मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 'राजधर्म निभाने' की सलाह देने के बावजूद उन्हें हटाना आसान नहीं था. मदन दास देवी उन दिनों एनडीए और बीजेपी के बीच मीडिएटर की तरह काम करते थे.
साल 2002 में गुजरात में गोधरा कांड के बाद हिंसा भड़क गई थी, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे. वाजपेयी उन दिनों केंद्र में गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे. जबकि गुजरात की कमान मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों में थी. उस वक्त जिस तरह गुजरात सरकार ने हालात को संभालने की कोशिश की, वाजपेयी उससे खुश नहीं थे. लेकिन उस वक्त मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की कुर्सी पार्टी और आरएसएस दोनों के समर्थन से बच गई थी.
मदन दास देवी ने वाजपेयी के 'राजधर्म' का पालन करने के सलाह पर न्यूज़ 18 से कहा, "अटल जी हमेशा चाहते थे कि लोग नियम न तोड़ें, साथ ही कानूनों का उल्लंघन न करें. लेकिन गुजरात में परिस्थितियां ऐसी थीं कि उनके सुझावों को लागू करना संभव नहीं था."
आरएसएस में रहते हुए मदन दास देवी ने दशकों तक वाजपेयी और आडवाणी के साथ मिल कर काम किया था. जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो उस वक्त मदन दास देवी आरएसएस के महासचिव थे.
मदन दास देवी इन दिनों सार्वजनिक जीवन में सक्रिय नहीं है. उन्होंने उस दौर को याद करते हुए कहा, "हमने फैसला किया था कि मोदी जो पहले पार्टी के संगठनात्मक महासचिव के रूप में काम कर रहे थे, उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भेजा जाए.''
देवी ने वाजपेयी को याद करते हुए कहा कि वो बड़े दिल वाले थे. उन्होंने कहा "वो राष्ट्र हित में विपक्ष के लोगों को साथ लेकर चलते थे. वो काफी मिलनसार थे. उनसे मिलने में मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई.''
वाजपेयी सरकार और आरएसएस के बीच अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर हमेशा विवाद रहा. देवी ने न्यूज़ 18 से कहा, ''वो सबको साथ ले कर चलने में सक्षम थे. राम मंदिर मुद्दे पर उन्होंने कहा था कि वो सीमाओं में रहते हुए ही काम कर सकते हैं.'' संघ राम मंदिर चाहता है लेकिन हम हर किसी के सहमति के बिना कुछ नहीं कर सकते.''
साभार- न्यूज 18