Publish Date:17-Dec-2016 18:17:46
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता व सांसद आलोक संजर ने कहा कि कांग्रेस की इससे बड़ी राजनैतिक विफलता क्या होगी कि गत नवंबर से आरंभ संसद सत्र में कांग्रेस तय नहीं कर पायी कि आखिर उसका मुद्दा क्या है ? न कांग्रेस विपक्ष को एक जुटकर पाया। अलबत्ता एक माह हवाबाजी में बिता दिया। जनता की गाढ़ी कमाई के अरबों रूपए बर्बाद कर दिए। मनगढंत आरोप लगाकर जग हसाई करायी।
उन्होंने कहा कि यदि विमुद्रीकरण के खिलाफ कांगे्रस को आपत्ति थी और उसे जनता की कठिनाई से सहानुभूति थी, तो भी कांग्रेस का फर्ज था कि वह सत्र में भाग लेती। लोकतंत्र में विरोध अनिवार्य विधा है, लेकिन इसके लिए यह भी आवश्यक है कि समस्या के समाधान के लिए विपक्ष रचनात्मक सुझाव दें। इस दिशा में कांग्रेस की विफलता से साबित हो गया है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी जनता की तकलीफों में भी सियासत करते रहे। जनता की कठिनाई कांग्रेस के लिए सत्ता के खेल में बदलने का शगल है।
आलोक संजर ने कहा कि विमुद्रीकरण के दूरगामी स्थायी लाभ को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कदम उठाया है वे उसके मामले में न तो डिगे और न संशकित हुए। श्री नरेन्द्र मोदी ने संसदीय दल की बैठक में यह भी स्वीकार किया कि विमुद्रीकरण का फैसला वोट बैंक की सियासत से मेल नहीं खाता, लेकिन यह निर्णय राष्ट्र के हित में है। आर्थिक विषमता की खाई पाटने का उपक्रम है। इसलिए दलीय हित से राष्ट्र हित सर्वोपरि है। संजर ने कहा कि विमुद्रीकरण की आवश्यकता देश में लंबे समय से महसूस की जाती रही है। वांचू कमेटी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था, लेकिन सत्ता की चाहत से कांग्रेस कभी मुक्त नहीं रही। श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था कि विमुद्रीकरण भले ही राष्ट्रहित में हो यह वोट बैंक पाॅलिटिक्स के प्रतिकूल है और उन्होंने प्रस्ताव का परित्याग कर दिया, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रहित को सर्वोच्च माना और राष्ट्रनिष्ठा का सबूत दिया है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासन में ही कालेधन की समानान्तर अर्थव्यवस्था का सृजन हुआ है। स्वाभाविक रूप से इसके उन्मूलन में न कभी कांग्रेस की रूचि रही है और न राहुल गांधी ने इसका सीधे सीधे समर्थन किया है। यदि राहुल गांधी विमुद्रीकरण के समर्थन में होते तो उन्हें संसद सत्र चलने देने में परहेज नहीं होता। कांग्रेस ने मनगढंत आरोप की जो रणनीति अपनायी है उससे कांग्रेस ने अपनी ही विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। इन मनगढंत आरोपों में दम होता तो राहुल गांधी संसद में बोलने का साहस दिखाते। उन्हें भय रहा है कि बेबुनियाद आरोप संसद में उनका प्रेत छाया की तरह पीछा करते रहेंगे।