Publish Date:08-Jun-2019 20:05:19
मानसून सत्र की अवधि बढ़ाने नेता प्रतिपक्ष ने लिखी मुख्यमंत्री को चिट्ठी
जुलाई का विधानसभा सत्र पावस है बजट सत्र नहीं
भोपाल। मध्यप्रदेश की 15 वीं विधानसभा का 19 दिवसीय मानसून सत्र 8 जुलाई से शुरू होगा, जो 26 जुलाई तक चलेगा। इस सत्र में बजट भी प्रस्तुत किया जाएगा और कुल 15 बैठकों वाला यह सत्र अभी तक का सबसे छोटा बजट सत्र होगा। इसकी अवधि को बढ़ाने के लिए नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को चिट्ठी लिखी है। इधर, भार्गव की चिट्ठी पर कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा है कि जुलाई का विधानसभा सत्र पावस है, बजट सत्र नहीं।
नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने मानसून सत्र की अवधि बढ़ाने के लिए शनिवार को मुख्यमंत्री कमलनाथ को चिट्ठी लिखी है। नेता प्रतिपक्ष ने अपने पत्र में विभिन्न वर्षों में बजट सत्रों की अवधि बताते हुए कहा है कि यह सत्र कम से कम पांच सप्ताह का रहता आया है। उन्होंने कहा है कि पन्द्रवीं विधानसभा को गठित हुए छह माह बीत चुके हैं और इस दौरान प्रदेश में अनेक ज्वलंत समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। इन समस्याओं पर विधानसभा में अब तक चर्चा नहीं हो सकी है। वहीं, बजट सत्र की अवधि से प्रतीत होता है सरकार मात्र 15 दिवस में सभी शासकीय और अशासकीय कार्य निपटा लेना चाहती है, जो कि व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। नेता प्रतिपक्ष श्री गोपाल भार्गव ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में बजट सत्र की अवधि को बढ़ाकर कम से कम पांच सप्ताह यानी 25 कार्य दिवस किए जाने की मांग की है। उन्होंने लिखा है कि सामान्यतः यह परंपरा रही है कि सत्रों की अवधि विपक्ष से चर्चा के उपरांत ही तय की जाती है, लेकिन वर्तमान सरकार ने इस परंपरा को भी तोड़ दिया है।
पिछले 15 साल में भाजपा ने विधानसभा की गरिमा को गिराया है और अधिकारों का हनन किया है: नरेन्द्र सलूजा
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री के मीडिया समन्वयक श्री नरेन्द्र सलूजा ने कहा है कि सत्ता से विमुख होते ही नेता प्रतिपक्ष श्री गोपाल भार्गव को विधानसभा का महत्व और परंपरा याद आने लग गयी। भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में किस तरह लोकतंत्र के इस मंदिर का माखौल उड़ाया जाता रहा है ,इसे पूरे प्रदेश ने देखा है। भाजपा के कार्यकाल में सदन की गरिमा को न केवल कम किया गया बल्कि उसके अधिकारों तक का हनन हुआ।
सलूजा ने कहा कि वैसे नेता प्रतिपक्ष श्री भार्गव को यह मालूम होना चाहिये कि जुलाई माह में बजट सत्र नहीं पावस सत्र आहूत किया गया है,जो कि भाजपा सरकार में मात्र 5-7 दिन का होता था।जबकि वर्तमान में यह सत्र 19 दिन का है। वेसे भी नेता प्रतिपक्ष को यह तो मालूम ही है कि सत्र आहूत करना, दिन निर्धारित करना विधानसभा अध्यक्ष एवं राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में होता है।
सलूजा ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष श्री भार्गव ने अपने पत्र में 2001 से 2017 तक हुए बजट सत्र के समयावधि का जो उल्लेख किया है, उससे ही यह स्पष्ट होता है कि भाजपा सरकार लोकतंत्र के एक स्तंभ विधायिका के प्रति कितनी गंभीर थी। स्वयं नेता प्रतिपक्ष श्री भार्गव कह रहे है कि कांग्रेस के कार्यकाल में 2001-2 में बजट सत्र की अवधि 76, 51 दिन की रही है। लेकिन जैसे ही 2003 में भाजपा सरकार आई बजट सत्र की अवधि घटते-घटते 2017 में 22 दिन तक पहुँच गई। स्वयं नेता प्रतिपक्ष स्वीकार रहे हैं कि भाजपा के कार्यकाल में अधिकतम 40 दिन और कम से कम 22 दिन का ही बजट सत्र पिछले 15 साल के कार्यकाल में संपन्न हुए है। इससे स्पष्ट है कि विधानसभा के प्रति किसकी सरकार सबसे ज्यादा उत्तरदायी रही है।
सलूजा ने नेता प्रतिपक्ष से कहा कि वे यह भी बता दें कि भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में सत्र कितने दिन के लिए बुलाये जाते थे और कितने दिन चलते थे? किस तरह अलोकतांत्रिक ढंग से बीच में ही अकारण समाप्त कर दिये जाते थे। कांग्रेस पार्टी द्वारा लाए गए दो अविश्वास प्रस्ताव के दौरान किस तरह मनमाने और तानाशाही रवैये के साथ लोकतंत्र की, विधानसभा की सभी परंपराओं और प्रतिपक्ष के वैधानिक अधिकारों को रौंदा गया, इसे पूरे प्रदेश ने देखा है। तब नेता प्रतिपक्ष को याद नहीं था कि जनता और प्रदेश की समस्याओं को उठाने का एक मात्र सक्षम एवं संवैधानिक मंच विधानसभा ही है।
सलूजा ने कहा कि वर्तमान कमलनाथ सरकार संसदीय और संवैधानिक संस्थाओं का आदर सम्मान करने के अलावा उसे सुदृढ़ बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस को लेकर नेता प्रतिपक्ष कोई संदेह न रखें। जहाँ तक जुलाई में हो रहे सत्र का सवाल है यह पावस सत्र है न कि बजट सत्र।