19-Apr-2024

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तीर्थ हैं क्षिप्रा के तट

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अनादि नगरी उज्जयिनी 'भौमतीर्थ'' भी है और 'नित्य तीर्थ'' भी है। भारत की ह्रदय-स्थली यह नगरी सृष्टि के प्रारंभिक काल से ही दिव्य पावन-कारिणी शक्ति से ओत-प्रोत रही है। स्कंद पुराण के अनुसार तो यहाँ पग-पग पर मोक्ष-स्थल तीर्थ बसे हैं। अवंतिखण्ड के अनुसार यहाँ 'महाकाल वन'' था, जहाँ सैकड़ों शिवलिंग थे, अत: उनके प्रभाव से यहाँ की पूरी भूमि नित्य तीर्थ बन गयी। इसकी पुष्टि वायु पुराण, लिंग पुराण, वराह पुराण भी करते हैं।

इस नगर में बहने वाली पुण्य सलिला क्षिप्रा का वर्णन यजुर्वेद में 'शिप्रे अवे: पय:'' के रूप में आया है। यह नदी इस नगर के तीन ओर से बहती है, इसलिये इसका 'करधनी'' नामकरण भी किया गया है। इस नगरी में आकर इसके घाटों पर स्नान करने से व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त हो जाती है तथा यह स्थल स्वयमेव तीर्थ बन जाते हैं। कहा जाता है कि सौ योजन (चार सौ कोस) दूर से भी यदि कोई क्षिप्रा नदी का स्मरण मात्र करता है तब उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह स्वर्ग-लोक को प्राप्त कर लेता है। मालवा की मोक्षदायिनी गंगा अर्थात् क्षिप्रा अपने उद्गम स्थल से कुल 120 मील (195 किलोमीटर) बहकर चम्बल (चर्मण्यवती) में मिलती है। नगर में इसके तटों पर धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक साधनाएँ कर अनेक साधकों ने सिद्धि प्राप्त की हैं। इसीलिये इसके तटों पर बसे मंदिर, आश्रम एवं उपासना-स्थल सांसारिकता से मुक्ति दिलाकर बैकुण्ठवासी बनाने में सहायक हैं। इस भवसागर से पार उतारने में इस नगरी को मोक्षदायिनी माना गया है। स्कन्द पुराण के अवंतिखण्ड में क्षिप्रा के तट स्थित घाट ही तीर्थ-स्थल माने गये हैं, जिनकी महिमा का गान किया गया है। उत्तरवाहिनी क्षिप्रा का स्वरूप ओखलेश्वर से मंगलेश्वर तक पूर्ववाहिनी है। इसी अवंतिखण्ड में इस नगरी के जिन तीर्थों का उल्लेख किया गया है, वह शंखोद्वार, अजागन्ध, चक्र, अनरक, जटाभृंग, इन्द, गोप, चिविटा, सौभाग्यक, घृत, शंखावर्त, सुधोदक, दुर्धर्ष, गोपीन्द्र, पुष्पकरण्ड, लम्पेश्वर, कामोदक, प्रयाग, भद्रजटदेव, कोटि, स्वर्णक्षुक, सोम, वीरेश्वर, नाग, नृसिंह इत्यादि हैं।

इस नगरी में अनेक सरोवर, कुएँ, बावड़ियाँ, तालाब, कुण्ड और क्षिप्रा नदी है। यहाँ के सप्त सागरों में रत्नाकर, सोला या पुरुषोत्तम, विष्णु, गोवर्धन, क्षीर, पुष्कर और रुद्रसागर आदि रहे हैं। यह नगरी जल-सम्पदा से हर युग में हरी-भरी रही है। यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का अनेक कवियों ने अपने साहित्य में उल्लेख किया है।

क्षिप्रा के तट स्थित कई दर्शनीय एवं पर्यटन-स्थल हैं, जिनमें त्रिवेणी स्थित नवग्रह एवं शनि मंदिर, नृसिंहघाट, रामघाट, मंगलनाथ, सिद्धनाथ, कालभैरव, भर्तृहरि की गुफा, कालियादेह महल, सूर्य मंदिर आदि हैं। यहाँ वर्षभर लाखों श्रद्धालुओं का आना-जाना बना रहता है।

उज्जयिनी की मोक्षदायिनी क्षिप्रा के तटों पर विश्व-प्रसिद्ध सिंहस्थ महापर्व के दौरान एक 'लघु भारत'' उपस्थित हो जाता है। यही कारण है कि क्षिप्रा किनारे के घाट अन्य पवित्र नगरियों के घाटों से कमतर नहीं हैं। देश-विदेश के कई श्रद्धालु और आस्तिकजन द्वारा क्षिप्रा किनारे के इन्हीं घाटों पर अपने पितृ पुरुषों की आत्मा की सद्गति के लिये श्राद्ध और तर्पण आदि कर उज्जयिनी की महिमा को विस्तारित किया जाता है।

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