26-Apr-2024

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भारत का तापमान बढ़ा रही है खेतों में लगी आग, NASA ने शेयर की ये तस्वीर

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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की पिछले 10 दिनों की तस्वीरों से पता चलता है कि भारत के बड़े हिस्से में आग लगी गई है। यह आग उत्तर प्रदेश (यूपी), मध्य प्रदेश (एमपी), महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और यहां तक कि कुछ दक्षिणी राज्यों में फैली हुई है। गर्मी के मौसम में ये आग तापमान को और बढ़ा रही हैं और ब्लैक कार्बन प्रदूषण का कारण बन रही हैं। ब्लैक कार्बन कालिख का एक हिस्सा है और ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण है।

इनमें से कुछ बिंदु जंगल की आग के हो सकते हैं लेकिन नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के शोध वैज्ञानिक हिरेन जेठवा का कहना है कि मध्य भारत में आग ज्यादातर फसल की आग हो सकती है क्योंकि जंगल की आग आमतौर पर अनियंत्रित होती है और इसलिए अधिक धुंआ और धुंध पैदा करती है।

कृषि वैज्ञानिक हाल के वर्षों में फसल में आग लगने की घटनाओं में आई भारी वृद्धि को फसल की कटाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कंबाइन हार्वेस्टर को वजह मान रहे हैं। फसल की कटाई के लिए ज्यादातर किसान कंबाइन हार्वेस्टर पर निर्भर रहते हैं। कटाई के इस तरीके से खेतों में एक छोटा सा ठूंठ बचा रह जाता है। फसल के ठूंठ को जलाने की यह आदत सिर्फ हरियाणा और पंजाब के उत्तरी राज्यों तक ही सीमित नहीं है, जहां समस्या बहुत ज्यादा है। 

धान का ठूंठ चारे के तौर पर इस्तेमाल में नहीं लाया जाता है इसलिए इसे जलाने की प्रथा किसानों में आम रही है। लेकिन गेहूं के ठूंठ को जलने की घटनाएं बढ़ी हैं जो तुलनात्मक रूप से नई प्रवृत्ति है। नासा के मानचित्रों में दिखाई दे रहे फसलों में लगी आग वाले राज्यों में प्रमुख तौर पर चावल-गेहूं के फसल की पैदावार होती है। यहां किसानों के लिए कटाई के दो विकल्प हैं- हाथ से या कंबाइन हारवेस्टर से। लेकिन खेतीहर मजदूरों की कमी के कारण, कटाई के लिए हार्वेस्टर का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है क्योंकि यह कटाई का तेज और सस्ता तरीका है जिसके बाद मिट्टी को धान के लिए तैयार किया जाता है।

देश के काले कार्बन उत्सर्जन का करीब 14 फीसदी हिस्सा अकेले फसल की ठूंठ जलाने से पैदा होता है। एमपी में सबसे ज्यादा फसल के आग की घटनाएं देखी जा रही हैं। इस साल करीब 10 किसानों को सिहोर में हिरासत में लिया जा चुका है, क्योंकि गेहूं के फसल की ठूंठ जलाने के लिए लगाई गई आग आसपास के खेतों में भी फैल गई थी।

ऐसे कोई आधिकारिक आंकड़ें नहीं हैं जो यह बताते हों कि कंबाइन हारवेस्टर के इस्तेमाल में वृद्धि और फसल की आग का आपस में कोई संबंध है। लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2018 इस तथ्य पर रौशनी डालता है कि खेती में मशीनीकरण में काफी वृद्धि हुई है। साल 1960-61 में लगभग 93 फीसदी खेती में पशुओं का इस्तेमाल होता था, जो अब घटकर सिर्फ 10 फीसदी हो गया है। खेती में मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल स्रोतों का इस्तेमाल 7 फीसदी से बढ़कर 90 फीसदी हो गया है।

साभार- अमर उजाला

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