23-Apr-2024

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राफेल डील पर दसॉ के CEO बोले- भारत को प्रतिशत सस्ते में दिया फाइटर जेट

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल डील को लेकर लगातार प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोल रहे हैं. इसी बीच राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दसॉ एविएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एरिक ट्रैपियर ने राहुल गांधी के आरोपों को पूरी तरह से खारिज किया है. न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में एरिक ट्रैपियर ने दसॉ-रिलायंस के जॉइंट वेंचर से संबंधित आरोपों को नकार दिया. एरिक ट्रैपियर ने कहा कि उन्हें कांग्रेस पार्टी के साथ पुराना अनुभव है और कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा की गई टिप्पणियों ने उन्हें दुखी किया है.

ट्रैपियर से जब पूछा गया कि राहुल गांधी ने दसॉ के अनिल अंबानी ग्रुप के साथ समझौते को लेकर उनपर झूठ बोलने का आरोप लगाया है तो एरिक ट्रैपियर ने कहा, "मैं झूठ नहीं बोलता. मैंने जो भी बयान दिए वे सच हैं. मेरी प्रतिष्ठा झूठ बोलने वाले की नहीं है. सीईओ के तौर पर मेरी स्थिति में आप झूठ नहीं बोल सकते."

कांग्रेस अध्यक्ष की टिप्पणी ने मुझे दुखी किया: दसॉ सीईओ

ट्रैपियर ने कहा, "कांग्रेस पार्टी के साथ हमें लंबा अनुभव है. भारत के साथ हमारा पहला सौदा 1953 में नेहरू और अन्य प्रधानमंत्रियों के साथ था. हम भारत के साथ काम कर रहे हैं. हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं कर रहे हैं. हम भारतीय वायु सेना (आईएएफ) और भारतीय सरकार को लड़ाकू जैसे रणनीतिक उत्पादों की आपूर्ति कर रहे हैं. यही सबसे महत्वपूर्ण है."

बता दें कि राहुल गांधी ने 2 नवंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि दसॉ ने अनिल अंबानी की घाटे में चल रही कंपनी में 284 करोड़ रुपये का निवेश किया, जिसका इस्तेमाल नागपुर में जमीन खरीदने के लिए किया गया. राहुल गांधी ने कहा था, "यह साफ है कि दसॉ के सीईओ झूठ बोल रहे हैं. अगर इसकी जांच होती है तो इस बात की गारंटी है कि मोदी नहीं बच पाएंगे."

जब उनसे पूछा गया कि लड़ाकू विमानों के निर्माण का कोई अनुभव न होने के बाद भी रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर के रूप में क्यों चुना गया तो ट्रैपियर ने स्पष्ट किया कि जो पैसा निवेश किया जा रहा है वह सीधे रिलायंस को नहीं जा रहा है बल्कि जॉइंट वेंचर को जा रहा है जिसमें दसॉ भी शामिल है.

उन्होंने कहा, “हम रिलायंस में पैसा नहीं लगा रहे हैं. पैसा जॉइंट वेंचर (जेवी) में जा रहा है. जहां तक सौदे के औद्योगिक हिस्से का संबंध है मेरे पास दसॉ के इंजीनियर और श्रमिक हैं जो नेतृत्व कर रहे हैं. इसी के साथ मेरे पास रिलायंस जैसी भारतीय कंपनी है जो इस जेवी में पैसा लगा रही है क्योंकि वे अपने देश को विकसित करना चाहते हैं. तो कंपनी को पता चल जाएगा कि विमान कैसे बनाना है."

ट्रैपियर ने दसॉ द्वारा किए जा रहे निवेश के बारे में और स्पष्ट किया और कहा कि शेयरों का पैटर्न निर्धारित सरकारी मानदंडों के अनुसार रिलायंस 49% और डेसॉल्ट 51% है.

ट्रैपियर ने कहा, "हमे कंपनी में 50:50 के तौर पर 800 करोड़ लगाने हैं. फिलहाल हैंगर में काम शुरू करने और श्रमिकों और कर्मचारियों का भुगतान करने के लिए हमने पहले ही 40 करोड़ रुपये लगाए हैं. लेकिन यह 800 करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया जाएगा, जिसका मतलब आने वाले 5 सालों में दसॉ द्वारा 400 करोड़ का निवेश करेगी."

उन्होंने कहा कि ऑफसेट का पालन करने के लिए दसॉ के पास सात साल हैं. ट्रैपियर ने कहा, "पहले तीन साल के दौरान हम इस बात के लिए बाध्य नहीं हैं कि हम किसके साथ काम कर रहे हैं. हमने पहले ही 30 कंपनियों के साथ काम और समझौता किया है, जो अनुबंध के अनुसार कुल ऑफसेट दायित्व का 40% है. इस 40% में से रिलायंस के पास 10% है जबकि बाकी 30% के लिए इन कंपनियों और दसॉ के बीच सीधा समझौता है.

विमानों की कीमत को लेकर दसॉ के सीईओ ने कहा कि वर्तमान विमान पहले की तुलना में 9% सस्ते हैं. उन्होंने कहा, "अगर आप उड़ने के लिए तैयार 18 विमानों से तुलना करते हैं तो 36 विमानों की कीमत उतनी ही थी. 36, 18 का दोगुना है, जहां तक मुझे पता है कीमत को दोगुना होना चाहिए था. लेकिन क्योंकि यह सरकार का सरकार से समझौता था इसलिए इसपर कुछ मोलभाव हुआ, मुझे कीमत में 9% कम करनी पड़ी. उड़ने के लिए तैयार राफेल की कीमत 36 विमानों वाले कॉन्ट्रेक्ट में 126 विमानों वाले कॉन्ट्रेक्ट से कम है.

ट्रैपियर से जब हिन्दुस्तान एरॉनेटिक लिमिटेड (एचएएल) से प्रारंभिक समझौते और भारतीय पीएसयू के साथ बातचीत टूटने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अगर 126 विमानों का समझौता हो जाता है तो वे एचएएल के साथ काम करने में हिचकिचाहट नहीं करेंगे.

ट्रैपियर ने कहा, "क्योंकि 126 विमानों का सौदा आसानी से नहीं हो पाया इसलिए भारत सरकार को फ्रांस से तत्काल 36 विमान हासिल करने पर विचार करना पड़ा. और फिर मैंने रिलायंस के साथ काम करने का फैसला किया, यहां तक कि एचएएल ने कुछ दिन पहले कहा भी था कि ऑफसेट का हिस्सा बनने में उसकी रुचि नहीं थी. इसलिए रिलायंस में निवेश मेरा निर्णय था."

ट्रैपियर ने आगे कहा कि ऑफसेट पार्टनर के लिए दसॉ कुछ अन्य कंपनियों से भी बात कर रही थी. उन्होंने कहा, "निश्चित तौर हम टाटा या अन्य पारिवारिक सूमहों के साथ जा सकते थे. हम 2011 में थे, टाटा अन्य उड़ान कंपनियों के साथ भी चर्चा कर रहा था. अन्त में हमने रिलायंस के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया क्योंकि उन्हें बड़ी इंजीनियरिंग सुविधाओं के क्षेत्र में अनुभव है."

विमान के बारे में बात करते हुए दसॉ के सीईओ ने बताया कि वर्तमान विमानों में हथियार और मिसाइल छोड़कर सभी आवश्यक उपकरण होंगे. उन्होंने कहा कि हथियारों को विभिन्न अनुबंधों में भेजा जाएगा. लेकिन हथियारों के अलावा अन्य सभी चीजों के साथ विमान दसॉ द्वारा भेजा जाएगा.

साभार- न्‍यूज 18

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