24-Apr-2024

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आरक्षण पर भागवत की दो टूक, संविधान के मुताबिक रहना चाहिए जारी

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नई दिल्लीः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आज दो टूक शब्दों में कहा कि देश में सामाजिक आधार पर आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक आरक्षण प्राप्त समुदाय ना कह दे कि उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने यहां विज्ञान भवन में ‘भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’विषय पर अपनी व्याख्यानमाला के तीसरे एवं अंतिम दिन प्रश्नों के उत्तर देते हुए कहा, सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए संविधान सम्मत सब प्रकार के आरक्षण का संघ पूरा समर्थन करता है। आरक्षण कब तक चलेगा, इसका निर्णय वही करेंगे जिनके लिए दिया गया है।

उन्होंने कहा कि क्रीमी लेयर को हटाने या अन्य जातियों को जोडऩे के बारे में विभिन्न आयोग निर्णय करें। संविधान ने पीठ स्थापित कीं हैं उनमें इसका निराकरण हो सकता है। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि आरक्षण कोई समस्या नहीं है लेकिन आरक्षण को लेकर राजनीति समस्या है। समाज एक अंग पंगु हो गया है तो उसे ठीक करके बाकी अंगों के समान स्वस्थ बनाना होगा।

अत्याचार से निपटने के लिए बनते हैं कानून
भागवत ने कहा, सामाजिक कारणो से हजारों वर्षों से यह स्थिति है कि हमारे समाज के एक अंग हमने निर्बल बना दिया है, हजार वर्षों की बीमारी ठीक करने में यदि 100-150 साल हमें नीचे झुक कर रहना पड़ता है तो यह महंगा सौदा नही है, यह हमारा कर्तव्य है। अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार कानून के दुरुपयोग को लेकर देश के कुछ भागों में आंदोलन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सामाजिक पिछड़ेपन के कारण स्वाभाविक रूप से अत्याचार होते हैं और उससे निपटने के लिए कानून बनते हैं। उन कानूनों को ठीक प्रकार से लागू किया जाये और उसका दुरुपयोग नहीं होने दिया जाये। उन्होंने कहा कि अत्याचार को सदभावना जागृत करके लागू किया जाये।

दीपक जलाने से होता है अंधेरा दूर
जाति व्यवस्था को लेकर पूछे गये सवालों के जवाब में सरसंघ चालक ने कहा कि आज जो है वह जाति अव्यवस्था है और उसे समाप्त होना है। लेकिन हमें उसके स्थान पर क्या होना चाहिए, उस पर ध्यान देना चाहिए। अंधेरे को लाठी मार कर नहीं भगाया जा सकता। एक दीपक जला देने से अंधेरा दूर हो जाता है। उन्होंने कहा कि समाज से सामाजिक विषमता का पोषण करने वाली बातें दूर होनी चाहिए। ऐसा करना कठिन कार्य है।

1950 के दशक में था ब्राह्मणों का वर्चस्व
भागवत ने कहा कि ऐसा अगर कोटा प्रणाली से किया जाएगा तो नहीं होगा। सहज प्रक्रिया से होगा तो एक निश्चित समय बाद स्वाभाविक रूप से हो जाएगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि संघ में जाति पूछने की प्रथा शुरू से ही नहीं है। संघ में 1950 के दशक में केवल ब्राह्मणों का वर्चस्व था लेकिन बाद में हर काोन में हर जाति समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व बढ़ता जा रहा है और यह स्वाभाविक रीति से हो रहा है। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी में भी ऐसा ही स्वरूप दिखने लगा है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि संघ ने घूमंतू जातियों को स्थिर करने और उनके बच्चों के शैक्षणिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए प्रयास करना आरंभ कर दिया है।

साभार- पंजाब केसरी

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