Publish Date:07-May-2018 13:32:01
भारतीय नैविगेशन सैटलाइट्स की सटीक लोकेशन डेटा अब आसानी से मिल सकेगी। इसके लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक परमाणु घड़ी विकसित की है जिसकी मदद से किसी भी लोकेशन से संबंध में जानकारी जुटाई जा सकेगी। इससे पहले इसरो को नैविगेशन सैटलाइट्स के लिए यूरोपियन ऐरोस्पेस मैन्युफैक्चरर ऐस्ट्रियम से परमाणु घड़ी खरीदनी पड़ती थी।
सटीक डेटा मुहैया करवाएगी यह घड़ी
अहमदाबाद बेस्ड स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर (एसएसी) के निदेशक तपन मिश्रा के अनुसार एसएसी ने देसी परमाणु घड़ी बनाई है जिेसे कई तरह के परीक्षण के लिए रखा गया है। सभी परीक्षण पास करने के बाद इस घड़ी को प्रायोगिक तौर पर नैविगेशन सैटेलाइट में इस्तेमाल किया जाएगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि अंतरिक्ष में यह कब तक टिक सकती है और साथ ही कितना सटीक डेटा मुहैया करवा सकती है। यह पूरी तरह से देसी परमाणु घड़ी है जो 5 सालों तक आसानी से काम कर सकती है।
चुनिंदा अंतरिक्ष संगठनों में शामिल हुआ ISRO
SAC डायरेक्टर ने कहा कि इस घड़ी के निर्माण के साथ ही इसरो उन चुनिंदा अंतरिक्ष संगठनों में भी शामिल हो गया है जिनके पास यह बेहद जटिल तकनीक है। यह हमारे डिजाइन और स्पेसफिकेशन के अनुरूप पर बनाई गई है। भारत के रीजनल नैविगेशन सैटलाइट सिस्टम (IRNSS) के तहत लॉन्च किए गए सभी सातों सैटलाइट में तीन-तीन आयात किए हुए रुबिडियम ऐटमिक क्लॉक हैं। तपन मिश्रा ने बताया कि पहले लॉन्च किए गए सातों सैटलाइट में लगे ऐटमिक क्लॉक्स को सिंक्रनाइज किया गया है। अलग-अलग ऑर्बिट में सैटलाइट्स में लगी इन घड़ियों के बीच समय अंतर नैविगेशन रिसीवर या पृथ्वी पर किसी वस्तु की सटीक पोजिशनिंग बताने में मदद करते हैं।
नैविगेशन सैटलाइट भी लॉन्च करने की योजना
इसरो में एक विश्वस्त सूत्र के अनुसार 7 नैविगेशन सैटलाइट्स में इस्तेमाल हुई 21 ऐटमिक घड़ियों में से 9 खराब हो गई हैं। इसलिए इसरो 4 बैकअप नैविगेशन सैटलाइट लॉन्च करने की योजना बना रहा है। लेकिन बैकअप सैटलाइट्स भेजने के लिए इसरो को पहले सरकार से वित्तीय मंजूरी की जरूरत है। गौरतलब है कि इसरो ने 12 अप्रैल को IRNSS-1I लांच किया था, जिसने भारत के पहले नैविगेशन सैटलाइट IRNSS-1A की जगह ली थी।
साभार- पंजाब केसरी